SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ -श्री: सेठिया जैन, अस्थमाल! पालन करता है - वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । (१४) अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य को जो साधु सम्यक् प्रकार से पालता है, ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों का अध्ययन करता है तथा वीस अंसमाधिस्थानों का त्याग कर समाधिस्थानों · 1 エ ' में प्रवृत्ति करना है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । T (१५) - जो साधुं इक्कीस प्रकार के शबल दोषों का सेवन नहीं करता, तथा बाईस परीषहों को समभाव से सहन करता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता: । - A (१६) जो साधु · सूयगडाग सूत्र के तेईस अध्ययन अर्थात् प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह और दूसरे श्रुतस्कन्ध के सात, इस प्रकार कुन तेईस अध्ययनों का भली प्रकार अध्ययन करके प्ररूपणा किरता है और चौबीस प्रकार के देवों (दस भवनपति, आठ वाणव्यन्तर, पांच ज्योतिषी और वैमानिक ) का स्वरूप - नानकर उपदेश देता है अथवा भगवान् ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थङ्करों की गुणानुवाद करता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । : - (१७) जो साधु सदा पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं में उपयोग रखता है और छबीस उद्देशों (दशाश्रुतस्कन्धः के दस, विकल्प के छः और व्यवहार सूत्र के दस कुल मिलाकर छब्बीस ) का सम्यक् : अध्ययन करके प्ररूपणा करता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करती 1 • 2 (6) (१८). जो साधुः सत्ताईस प्रकार के अनगार गुणों को धारण करता है और मट्ठाईस प्रकार के साचार प्रकल्पों में सदां उपयोग रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता & ❤ gophag } J 1 I नोट -- जिसमें साधु के आचार का कथन किया गया हो उसे प्रकल्प कहते हैं । यहाँ आचारप्रकल्प शब्द से आचाङ्ग के - सत्थपरिया, लोगविजय आदि अट्ठाईस अध्ययन लिये जाते हैं
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy