________________
१२४ "मी सेठिया जैन ग्रन्थमाली mmmmmmmmmmmmmmmm mmmmmmmmmmmmmm स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार मिलने पर साधी साधुओं को निमन्त्रित करके स्वयं आहार करता है, फिर स्वाध्याय कार्य में लग जाता है वही सच्ची साध है
(P क) जो महात्मा क्लेश उत्पन्न करने वाली बातें नहीं करता, किसी.पर क्रोध नहीं करता, इन्द्रियों को चञ्चल नहीं होने देता, सदा प्रशान्त रहता है, मन, वचन, 'और कायर्या को दृढ़ता पूर्वक संयम में स्थिर रखता है, कष्टों को शान्ति से सहता है, उचित कार्य का अनादर नहीं करता वहीं सच्चा साधु है। : (११):जो महापुरुष इन्द्रियों को कण्टक के समानदाख देने वाले आक्रोश, प्रहार तथा तन्ना आदि को शान्ति से सहती है। भय, भयङ्कर शब्द तथा प्रहास आदि के उपसा को सप्रमौषि पूर्वक सहता है वहीं संचामिन है।
) १२ श्मशान में प्रतिमा अङ्गीकार करके जो भूत पिशाच आदि, के.भयङ्कर दृश्यों को देखकर भी विचलित नहीं होता । विविध प्रकार के तप करता हुआ जो अपने शरीर की भी परवाह नहीं करता वहीं सच्चाभिनु है। . .. , , (१३) जो मुनि अपने शरीर की ममत्व छोड़ देता है बार चार धमकाये जाने पर, मारे जाने पर या घायल होने पर भी शान्ति रहता है । निदान (भविष्य में स्वर्गादि फल की कामना) या किसी प्रकार. का कुतूहल न रखते हुए जो पृथ्वी के समान सभी कष्टों को समभाव पूर्वक सिंहता है वहीं सचा मितु है। .....
(१४) अपने शरीर से परीपहों को जीत कर जो अपनी आत्मा' को जन्म मरण के चक्र से निकालता हैं, जन्म मरण को महाभय समझ कर तप और संयम में लीन रहता है वही सच्चा मितु है।
(१५) जो साधु अपने हाथ, पैर, वचन और इन्द्रियों पर पूर्ण' संयम रखता है । सदा आत्मचिन्तन करता हुआ समाधि में लीन
wun
.