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श्री जैन मिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग १११ कि मन्दबुद्धि, शिष्य भी बड़ी आसानी के साथ उन तत्वों को समझ लेते । पहले पढ़े हुए श्रुतज्ञान में से भी साधुओं ने बहुत सी शंकाएं की, उनका खुलासा भी वज्रमुनि ने अच्छी तरह से कर दिया। साधु वज्रमुनि को बहुत मानने लगे। कुछ समय के पश्चात्
आचार्य वापिस लौट आये। उन्होंने साधुओं से वाचना के विषय में पूछा। उन्होंने कहा-हमारा वाचना का कार्य यहुत अच्छा चल रहा है। कृपा कर अब सदा के लिये हमारी वाचना का कार्य वज्रमुनि को सौंप दीजिये । गुरु ने कहा-तुम्हारा कहना ठीक है । वज्रमुनि के प्रति तुम्हारा विनय और सद्भाव अच्छा है। तुम लोगों को बनमुनि का माहात्म्य बतलाने के लिये मैंने वाचना देने का कार्य चत्रमुनि को सौंपा था । वज्रमुनि ने यह सारा ज्ञान सुनकर ही प्राप्त किया है किन्तु गुरुमुख से ग्रहण नहीं किया है। गुरुमुख से ज्ञान ग्रहण किये बिना कोई वाचनागुरु नहीं हो सकता। इसके बाद गुरु ने अपना सारा ज्ञान बज्रमुनि को सिखा दिया।
एक समय विहार करते हुए प्राचार्य दशपुर नगर में पधारे। उस समय अवन्ती नगरी में मद्रगुप्त आचार्य वृद्धावस्था के कारण स्थिरवास रह रहे थे। प्राचार्य ने दो साधुओं के साथ बज्रमुनिको उनके पास भेजा। उनके पास रहकर बज्रमुनि ने विनयपूर्वक दस पूर्व का ज्ञान पढ़ा। आचार्य सिंहगिरि ने अपने पाट पर वज्रमुनि को विठाया। इसके पश्चात् प्राचार्य अनशन कर स्वर्ग सिधार गये। ___ ग्रामानुग्राम विहार कर धर्मोपदेश द्वारा वज्रमुनि जनता का कल्याण करने लगे। अनेक भव्यात्माओं ने उनके पास दीक्षा' ली। सुन्दर रूप, शास्त्रों का ज्ञान तया विविध लब्धियों के कारण वनमुनि का प्रभाव दूर दूर तक फैल गया। . .
बहुत समय तक संयम पालकर वज्रमुनि देवलोक में पधारे। रजी का जन्म विक्रम संवत् २६ में हुआ था और स्वर्गवास