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श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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होते हैं। उस में से चार सनाड़ी में हैं और बारह बारह पसवाड़ों में। एक पूरे राजू भर्थात् चार खण्ड राजुओं की ऊँचाई तक चौड़ाई घरावर है। इस प्रकार तमस्तमःप्रभा पृथ्वी में ११२ खण्ड राजू हैं।
(२) तमस्तमः प्रभा के ऊपर एक राजू की अवगाहना वाली छठी पृथ्वी तमःप्रभा है। इसका विस्तार साढ़े छः राजू है। त्रसनाड़ी में एक राजू और उसके बाहर दोनों तरफ पौने तीन तीन राजू है। चौड़ाई में खण्ड रज्जु २६ हैं। चार त्रसनाड़ी में और ग्यारह ग्यारह दोनों तरफ । कुल खण्ड रज्जु १०४ हैं।
(३)तमःप्रभा के ऊपर एक राज़ की अवगाहना वाली पाँचवीं पृथ्वी धूमप्रभा है। इसका विस्तार छः राजू है। एक राजूत्रसनाड़ी में और अढ़ाई अढाई राजू दोनों तरफ।चौड़ाई में खण्डरज्जु २४ हैं। चार त्रसनाड़ी में और दस दस दोनों तरफ। कुल खण्डरज्जु ६६ हैं। सातवीं पृथ्वी से लेकर पांचवीं तक दोनों तरफ से एक एक खण्डरज्जु कम होता जाता है।
(४) धूमप्रभा के ऊपर चौथे राजू में एक राजू की अवगाहना वाली चौथी पृथ्वी पंक प्रभा है। इसका विस्तार पाँच राजू है । एक राजू त्रसनाड़ी में और दो दो राजू दोनों तरफ। चौड़ाई में खण्ड रज्जु २० हैं। चार सनाड़ी में और आठ अाठ दोनों तरफ। कुल खण्डरज्जु ८० हैं। ___ (५) पंक प्रभा के ऊपर पाँचवें राजू में वालुकाप्रभा है। इस की भी अवगाहना एक राजू है । चौड़ाई चार राजू है । एक राजू असनाड़ी में और डेढ़ डेढ़ राजू दोनों तरफ | चौड़ाई में खण्डरज्जु १६ हैं। चार बीच में और छह छह दोनों तरफ। कुल खंडरज्जु ६४ हैं।
(६) वालुका प्रभा के ऊपर छठे राजू में शर्कराप्रभा नाम की दूसरी पृथ्वी है । इस की अवगाहना एक राजू है। चौड़ाई अढाई राजू है । एक राजू त्रसनाड़ी के बीच है और पौन पौन अर्थात्