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_ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग पाये जाते हैं। नोसंयत नोअसंयत नोसंयतासंयत जीव (सिदों) में तीन भंग पाये जाते हैं।
(८)कषाय द्वार- सकपायी(कषाय वाले)जीवों में सामान्य जीवों की तरह तीन भंग पाये जाते हैं। सकषायी एकेन्द्रियों में सिर्फ एक भंग पाया जाता है। क्रोध कपायी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग और देवों में छः भंग पाये जाते हैं। मान और माया कषाय वालों में तीन और नैरयिक तथा देवों में छ: भंग होते हैं। लोभ कषाय वालों में तीन और नैरयिकों में छः भंग पाये जाते हैं। अपायी मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग पाये जाते हैं।
(8) ज्ञान द्वार-ज्ञानवान् ,प्राभिनिबोधिक ज्ञान वाले और श्रुतज्ञान वाले जीवों में काल की अपेक्षा सप्रदेश और अप्रदेश के तीन भंग पाये जाते हैं और विकलेन्द्रियों में छःभंग पाये जाते हैं। अवधिज्ञान,मनापर्यय ज्ञान और केवल ज्ञान वालों में तीन भंग पाये जाते हैं। श्रोधिक अज्ञान, मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान वाले जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग और विभंग ज्ञान वाले जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं।
(१०) योग द्वार- सयोगी में सामान्य जीव की तरह भंग पाये जाते हैं। मनयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीवों में तीन भंग होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों के काययोग ही होता है। उनमें सिर्फ एक ही भंग होता है। अयोगी जीवों में और सिद्धों में तीन भंग होते हैं।
(११)उपयोग द्वार-साकार उपयोग और अनाकार उपयोग वाले जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग होते हैं।
(१२) वेद द्वार-स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपंसक वेद वाले जीवों में तीन भंग होते हैं किन्न aim ...