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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
और बहुत जीव सप्रदेश' और कभी 'बहुत जीव अप्रदेश और बहुत जीव सप्रदेश' इस प्रकार तीनों भंग पाए जाते हैं। अनाहारक जीवों में छः भंग पाए जाते हैं
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(१) कुछ सप्रदेश (२) कुछ अप्रदेश (३) कोई एक समदेश और कोई एक प्रदेश (४) कोई एक सप्रदेश और बहुत अप्रदेश (५) कुछ (बहुत) सप्रदेश और कोई एक अप्रदेश (६) कुछ (बहुत) समदेश और कुछ (बहुत) अपदेश ।
(३) भव्यत्व द्वार - जिस तरह सामान्य जीव का कथन किया गया है उसी तरह भवसिद्धिक (भव्य ) और अभवसिद्धिक (अभव्य ) जीवों के लिये भी जानना चाहिये । नोभवसिद्धिक नोभवसिद्धिक (सिद्ध) जीवों में तीन भांगे पाये जाते हैं।
( ४ ) संझी द्वार - संज्ञी जीवों में तीन भांगे पाये जाते हैं। असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर तीन भांगे पाये जाते हैं । नैरयिक, देव और मनुष्यों में अनाहारक की तरह छः भांगे पाये जाते हैं। नोसंज्ञी नोअसंज्ञी (सिद्ध) जीवों में तीन भांगे पाये जाते हैं।
(५) लेश्याद्वार - सलेश्य (लेश्या वाले) जीवों का कथन सामान्य जीवों की तरह है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्या वाले जीवों में आहारक जीवों की तरह तीन भांगे पाये जाते हैं। तेजोलेश्या वाले जीवों में तीन भांगे होते हैं किन्तु पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय और तेजोलेश्या वाले जीवों में छः भंग पाये जाते हैं।
(६) दृष्टिद्वार - सम्यग्दृष्टि जीवों में सामान्य जीवों की तरह तीन भांगे पाये जाते हैं। विकलेन्द्रियों में छः और मिथ्यादृष्टियों में एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर तीन भाँगे पाये जाते हैं। मिश्रदृष्टि जीवों में छ: भाँगे पाये जाते हैं।
( ७ ) संयत द्वार - संयत जीवों में तीन, एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर असंयत जीवों में तीन और संयतासंयत जीवों में तीन भंग