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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला na wwwson woww www.wwww.maww nana com nomoww ww (७)कुरूप-निन्दित रीति से मोह उत्पन्न कर ठगने की प्रवृत्ति। (८) जिह्मता- कुटिलता पूर्वक ठगने की प्रवृत्ति। (8) किल्विष - किल्विपी सरीखी प्रवृत्ति करना। (१०) आदरणा (आचरणा)-मायाचार से किसी वस्तु का आदर करनाअथवा ठगाई के लिये अनेक प्रकार की क्रियाएं करना। (११) गृहनता- अपने स्वरूप को छिपाना। (१२) वञ्चनता-दूसरे को ठगना।
(१३) प्रतिकुंचनता-सरल भाव से कहे हुए वाक्य का खंडन करना या विपरीत अर्थ लगाना।
(१४) सातियोग- उत्तम पदार्थ के साथ हीन (तुच्छ) पदार्थ मिला देना।
(समवायाग ५२ में मे) ८३७- लोभ के चौदह नाम
लोभ कषाय के समानार्थक चौदह नाम हैं(१) लोभ- सचित्त या अचित्त पदार्थों को प्राप्त करने की लालसा रखना।
(२) इच्छा- किसी वस्तु को प्राप्त करने की अभिलापा।
(३) मूर्छा- प्राप्त की हुई वस्तुओं की रक्षा करने की निरन्तर अभिलाषा।
(४) कांता-अप्राप्त वस्तु की इच्छा। (५) गृद्धि-प्राप्त वस्तुओं पर आसक्तिभाव । (६) तृष्णा- प्राप्त अर्थ का व्यय न हो ऐसी इच्छा। (७) भिध्या-विषयों का ध्यान। (८) अभिध्या- चित्त की चंचलता। (8)कामाशा-इष्ट रूप और शब्द की प्राप्ति की इच्छा करना। (१०) भोगाशा- इष्ट गन्ध आदि की प्राप्ति की इच्छा करना।