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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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या समय उपस्थित होना जिस में शास्त्र की स्वाध्याय वर्जित है, उसमें स्वाध्याय करना।
(१४) सज्झाए न सज्झाओ- सज्झाय अर्थात् स्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करना।
((मावश्यक प्रतिक्रमण सूत्र) (अनुयोगदारसूत्र सत्र, निक्षेप वर्णन) ८२५-- भूतग्राम (जीवों) के चौदह भेद . जीवों का दूसरा नाम भूत है। उनके समूह को भूतग्राम कहते हैं। इन के चौदह भेद हैं
सूक्ष्म एकेन्द्रिय,बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय । इन सातों के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह भेद होते हैं।
पृथ्वीकाय आदि जिन जीवों को सूक्ष्म नामकर्मका उदय होता है वे सूक्ष्म कहलाते हैं और जिन जीवों को बादर नामकर्म का उदय होता है वे बादर कहलाते हैं। __ जिस जीव में जितनी पर्याप्तियाँ सम्भव हैं उतनी पर्याप्तियाँ पूरी बाँध लेने पर वह पर्याप्तक कहलाता है। एकेन्द्रिय जीव अपने योग्य (आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास) चार पर्याप्तियाँ पूरी कर लेने पर पर्याप्तक कहे जाते हैं। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय,त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव उपरोक्त चार और पाँचवी भाषा पर्याप्ति पूरी करने पर और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव उपरोक्त पांचों पर्याप्तियों के साथ छठी मनः पर्याप्ति पूरी कर लेने पर पर्यातक कहे जाते हैं। जिन जीवों की पर्याप्तियाँ पूरी न हुई हों वे अपप्तिक कहे जाते हैं। कोई भी जीव आहार, शरीर और इन्द्रिय इन तीन पर्याप्तियों को पूर्ण किये विना नहीं मर सकता, क्योंकि इन तीन पर्याप्तियों के पूर्ण होने पर ही आगामी भव की आयु का बंध होता है।
पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञी के भेद से दो प्रकार का है।