________________ 186 श्री संठिया जैन ग्रन्थमाला एयमई सपेहाए, पासे समिय दंसणे / छिंद गेहिं सिणेहं च, ण कखे पुव्वसंयवं // 4 // गवासं मणिकडलं, पसवो दासपोरुस / सव्वमेयं चइसा रणं, कामरूवी भविस्ससि // 5 // थावरं जंगर्म चेव, धणं घराणं उवश्वरं / पञ्चमाणस्स कम्मेहि, नालं दुक्खाउ मोयणे / / 6 // अभत्थं सव्वो सव्वं, दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए // 7 // आयाणं नरयं दिस्स, नायइज्ज तणामवि / दोगुंछी अप्पणो पाए, दिन्नं मुंजेज्म भोयणं // 8 // इहमेगे उ मन्नंति, अप्पश्चक्वाय पावगं / पायरियं विदित्ता णं, सव्वदुक्खा विमुच्चइ // 6 // भयंता अकरिता य, बंधमोक्वपइणिणो / वायाविरियमेणं, समासासेंति अप्पगं // 10 // न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं / विसम्णा पावकम्मे हिं, बाला पंडियमाणियो / / 11 / / जे केइ सरीरे सत्ता, वरणे रुवे य सध्वसो / मरणसा कायवक्केणं, सव्वे ते दुपवसंभवा // 12 // आवण्णा दीहमद्धाणं, संसारंमि अयंतए / नम्हा सव्वदिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिव्वए / / 13 // वहिया उडमादाय, नावकंखे कयाइ वि / / पुचकम्मक्खयहाए, इमं देहमुदाहरे // 14 // विविञ्च कम्मुणो हेर्ड, कालकरखी परिचए / मायं पिण्डस्स पाणस्स, कडं लण भक्खए // 15 //