________________ 478 श्री सेठिगा जैन मन्थमाला nN तमंतमेणेव उ से असीले, सया दुही विप्परियासुवेइ / संधावई नरगतिरिक्वजोणी, मोणं विराहित्तु असाहुरूवे // 6 // उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुच्चई किंचि अणेसणिज्जं / अग्गीविवा सव्वभक्खी भक्त्तिा,इओ चुओगच्छइ कह पावं // 10 // न तं अरी कंठ छिता करेई, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा / से नाहिई मच्चुमृहं तु पत्ते, पच्छागुतावेण दयाविहूणो॥ 11 // निरत्थया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमहे विवयासमेइ / इमेवि से नत्थि परेवि लोए,दुहनोऽवि से झिज्झइ तत्थ लोए॥१२॥ एमेवऽहाछंदकुसीलरूथे, मग्गं विराष्ठित्त मिगुत्तमाणं / कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा. निरहसोया परितावमेह // 13 // सुच्चाण मेहावि सुभासियं इमं, अणुसासरणं नाणगुणोववेयं / मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियंठाण वए पहेणं / / 14 / / चरितमायारगुणन्निए तओ, अणुत्तरं संजम पालिया णं / निरासवे संखविया ण कम्मं, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं // 15 // दशवकालिक सूत्र चूलिका 2 (बोल नम्बर 861) चूलिअं तु पवक्रवामि, सुझं केवलिभासियं / जं मुणित्तु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पज्जए मई // 1 // अणुसोअपहिअबहुजणंमि, पडिसोअलद्धलक्खेणं / पडिसोअमेव अप्पा, दायव्बो होउ कामेणं // 2 // अणुसोय सुहो लोओ, पडिसोमो पासबो मुविहिबाणं / अणुसोओ संसारो, पडिसोओ तस्स उत्तारो // 3 // तम्हा आयारपरक्कमेणं, संवर समाहिबहुलेणं / चरिआ गुणा भ नियमा अ, हंति साहूण दहव्वा / / 4 / / अनिएअवासो समुआण चरिश्रा, अन्नायउंछ पइरिक्कया अ / गोन