________________ परिशिष्ट श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह में दिये गए __ -- गाथाओं के भावार्थ का मूल पाठ 'श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह' के कई बोलों में सूत्र की गाथाओं का भावार्थ दिया गया है। अस्वाध्याय काल में बाँचने, से होने वाली सूत्रों की प्राशासना से बचने के लिए वहाँ मूल गाथाएं नहीं दी गई / यहाँ उन सब गाथाओं को दिया जाता है। पाठकों को चाहिए कि उन्हें अस्वाध्याय के समय को टाल कर पढ़ें। अस्वाध्यायों के ज्ञान के लिए नीचे सवैये दिए जाते हैं। बीज कड़के भपार, भूमिकप भारी है। बाल चन्द्र, जख चेन, भाकाशे अगन काय, काली धोली धुंध और रजोधात न्यारी है // 1 // हाड़, मांस, लोही, राध, ठंडले मसाण वले, चन्द्र सूर्य ग्रहण और राज मृत्यु टाली है। थानक में मर्यो पड़यो, पंचेन्द्रिय कलेवर, ए बीस वोल टाल कर ज्ञानी आज्ञा पाली है // 2 // आषाढ़, भादों, भासु, फाती और चैती पूनम जाण, इण थी लगती टालिए पड़वा पाँच बरखाण। पड़वा पाँच पखाण, सांझ सरेर मध्य न भणिये, श्राधी रात दोष हर, सब मिल चौंतीस गिणिए / चौंतीस मसझाई टाल के, सूत्र भणसी सोय। ऋषिलालचन्द इणपरिकहे,ताफे विधन नव्यापे कोय॥