________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग 413 wwimwwwmmmm.rammmmmm आदर पूर्वक माहार पानी पहराया। फिर पोटिला उनसे पूछने लगी कि कृपा कर मझे कोई ऐसी दवा, चूर्णयोग या मन्त्र वगैरह बताभो जिससे मैं फिर तेतलीपुत्र को प्रिय एवं इष्ट बन जाऊँ ? पोटिला के इन वचनों को सुन कर उन भार्याभों ने दोनों हाथों से अपने दोनों कान बन्द कर लिए और कहने लगी कि ऐसी दवा या मन्त्र तन्त्र बताना तो दूर रहा हमें ऐसे वचनों को सुनना भी योग्य नहीं क्योंकि हम तो पूर्ण ब्रह्मचर्य को पालने वाली आर्याएं हैं। इम तुझे केवली प्ररूपित धर्म कह सकती हैं। ___ उन आर्याओं के पास से केवली प्ररूपित धर्म को सुन कर पोहिला ने श्राविका के व्रत अङ्गीकार किये और धर्मकार्य में प्रवृत्त हुई। कुछ समय पश्चात् पोटिला ने सुत्रता प्रापो के पास दीक्षा लेने के लिए तेतलीपुत्र से आज्ञा मांगी। तेतलीपुत्र ने कहा- 'चारित्र पालन करके जब तुम स्वर्ग में जाओ तब वहाँ से आकर मुझे केवली प्ररूपित धर्म का उपदेश देकर धर्म मार्ग में प्रवृत्त करोतो मैं तुम्हें भाज्ञा दे सकता हूँ।' पोट्टिला ने इस बात को स्वीकार किया और तेतलीपुत्र की प्राज्ञा लेकर सुव्रता भार्या के पास दीक्षा ले ली। बहुत वर्षों तक दीक्षा पाल कर काल करके देवलोक में उत्पन्न हुई। इधर राजा कनकरथ की मृत्यु होगई तब गुप्त रखे हुए कनकध्वज कुमार को राजगद्दी पर बिठाया। राजा कनकध्वज अपनी माता पद्मावती रानी के कहने से तेतलीपुत्र मन्त्री का बहुत भादर पत्र मन्त्रीकापभोगों में भधिक गृदएवं मासक्त होगया। पोट्टिल देव ने तेतलीपुत्र को धर्म का बोध दिया किन्तु से धर्मकी भोर रुपि न हुई। सब पोट्टिल देव ने देवशक्ति से राजा कनकध्वज का मन फेर दिया जिससे वह तेतलीपुत्र का किसी प्रकार मादरसत्कार नहीं करने लगा और उससे विमुख होगया। तेतलीपत्र बहुत भय