________________ 46. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला nonr mmmmmm (13) नन्द मणियार की कथा तेरहवॉ दर्दुर ज्ञात अध्ययन-सद्गुरु के प्रभाव से तप, नियम, व्रत,पञ्चक्रवाण आदि गुणों की हानि होती है। इस बात को बतलाने के लिए दर्दर (मेंढक) का दृष्टान्त दिया गया है। एक समय ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् महावीर राजगृह नगर में पधारे। उस समय दर्दुर नाम का देव सूर्याभ देव के समान नाट्यविधि दिखला कर और भगवान् को वन्दना नमस्कार करके वापिस अपने स्थान को चला गया। उसकी ऋद्धि के बारे में गौसम स्वामी ने प्रश्न पूछा। तब भगवान् ने उसका पूर्वभव फरमाया राजगृह नगर में नन्द नाम का मणियार रहता था। उपदेश सन कर वह श्रावक बन गया। श्रावक बनने के बाद वहुत समय तक साधुओं का समागम नहीं होने से तथा मिथ्यात्वियों का परिचय होते रहने से वह मिथ्यत्वी बन गया। एक समय ग्रीष्म ऋतु में तेला करके वह पोषधवत कर रहा था। उस समय तृषा का परिपह उत्पन्न हुआ जिससे उसकी यह भावना होगई कि जो लोग कुत्रा, वावड़ी भादि खुदवाते हैं और जहाँ अनेक प्यासे आदमी पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं वे लोग धन्य हैं। अतः मझे भी ऐसा ही करना श्रेष्ठ है / प्रातःकाल पारणा करने के बाद राजा की आज्ञा लेकर नगर के बाहर एक विशाल वावड़ी खुदवाई और वाग, वगीचे, चित्रशाला,भोजनशाला,वैद्यकशाला अलङ्कार सभा आदि वनवाई। उनका उपयोग नगर के सबलोग करने लगे और नन्द मणियार की प्रशंसा करने लगे। अपनी प्रशंसा सुन कर वह अत्यन्त प्रसन्न होने लगा। उसका मन दिन रारा वावड़ी में रहने लगा। वह उसी में आसक्त होगया। एक समय नन्द मणियार के शरीर में श्वास, खांसी, कोढ़ आदि सोलह