________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग 456 wwwrr~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm विशेष से शुभ पुद्गल अशुभ और अशुभ पुद्गल शुभ रूप से परिणात हो सकते हैं / रामाने मन्त्री के इन वचनों को सत्य नहीं माना। ___ एक समय सुबुद्धि मन्त्री के साथ राजा बाहर घूमने गया। नगर के बाहर एक खाई के अति दुर्गन्धित जल को देख कर राजा ने उस जल की निन्दा की। दूसरे लोगों ने भी राजा के कथन का समर्थन किया / मन्त्री को मौन देख कर राजा ने इसका कारण पूछा। मन्त्री ने वही पूर्वोक्त जवाब दिया। राजा ने मन्त्री के कथन को सत्य नहीं माना। अपने वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए और राजा को तत्त्व का ज्ञान कराने के लिए मन्त्री ने उसी खाई से जल मंगाया और एक अच्छे वर्तन में डाला। फिर अनेक प्रयोग करके उस जल को शद्ध भौर अति सुगन्धित बनाया / जलरक्षक के साथ उस जल को राजा के पास भेजा | उस जल को पीकर राजा बहुत खुश हुआ और जलरक्षक से पूछा कि यह जल कहाँ से आया ? उसने उत्तर दिया कि सुबुद्धि मन्त्री ने मुझे यह जल दिया है। तव राजा ने मन्त्री से पूछा / मन्त्री ने जवाब दिया कि यह जल उसी खाई का है। प्रयोग करके मैंने इसको इतना श्रेष्ठ और सुगन्धित बनाया है। राजा को मन्त्री के वचनों पर विश्वास आगया। उसने मन्त्री से धर्म का तत्त्व पूछा / मन्त्री ने राजा को धर्मका तत्त्व बड़ी खूबी से समझाया। कुछ समय पश्चात् राजा और मन्त्री दोनों को संसार से विरक्ति हो गई और दोनों ने प्रव्रज्या अङ्गीफार कर ली। ग्यारह अङ्ग का ज्ञान पढ़ा और बहुत वर्षों तक श्रमण पयोय का पालन फर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त हुए। ___ जल के दृष्टान्त का अभिप्राय यह है कि खाई के पानी की तरह पापी जीव भी सद्गुरु की संगति करने से अपना आत्म कल्याण फरने में समर्थ हो सकते हैं।