________________ 416 श्री सेठिया जैन धन्यमाला और जाना कि वे इसी भरतक्षेत्र में अलग अलग राजाओं के यहाँ राजपुत्र रूप से उत्पम हुए हैं। __ भविष्य में होने वाली घटना को ज्ञान द्वारा जान कर मल्लिकुंवरी ने नौकरों को बुला कर अशोक वाटिका में अनेक स्तम्भों वाला एक मोहनघर बनाने की माझा दी। मोहन पर बन जाने के बाद उसके बीच मल्लिकुंबरी के भाकार बाली एफ सोने की प्रतिमा बनपाई / उसके मस्तक पर एकछिद्र रखा और उस पर एक कमलाकार उक्कन लगा दिया। मल्लिकंबरी जो भोजन करती उसमें से एक त्रास प्रतिदिन उस छिद्र में डाल कर नापिस ढक्फन लगा दिया जाता था। भोजन के सड़ने से उसमें से गाय और सर्प के मृत कलेबर से भी अत्यन्त अधिक दुर्गन्ध उठने लगी। मल्लिकुंवरी अव पूर्ण यौवन अमस्या को प्राप्त हो चुकी थी। उसके रूप लावण्य की प्रशंसा चारों तरफ फैल गई। उस समय साकेतपुर नाम का नगर था। वहॉ प्रतिबुद्धि नाम का गणा राज्य करता था। रानी का नाम पद्मावती था। रामा के प्रधान मन्त्री का नाम मुबुद्धिथा / यह राजनीति में बड़ा चतुर था। ___ एक समय नाग महोत्सव मनाने के लिये राजा, रानी और मन्त्री सभी उद्यान में गये / वहाँ राजा ने एक बड़ा मिरिदामगंड अर्थात् सुन्दर मालाओं का दण्डाकार समूह देखा। उसे देख कर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने मन्त्री से पूछा कि क्या तुमने सही पहले ऐसा सिरिदामगंड देखा है। मन्त्री ने उत्तर दियाराजन् ! एक समय मैं मिथिला गया था। उस समय वहॉ के राजा कुम्भ की पुत्री मल्लिकँवरी का जन्म महोत्सव मनाया जा रहा था। मैने वहाँ एक सिरिदामगंड देखा था। पद्मावती रानी का यह सिरिदामगंड उसकी शोभा के लाख अंश को भी प्राप्त नहीं होता।