________________ श्री जैन सिमान्त बोल सपह, पाचवा भाग 445 ~ ~ ~ ~ on लता यानि वहुमान पूर्वक भक्ति करने से। (8) ज्ञान (6) दर्शन (१०)विनय (11) आवश्यक (१२)शीलवत इन पॉचों का निरतिचार पालन करने से (13) खणलव-संवेग,भावना और ध्यान से (14) तप (15) त्याग (16) वैयावच्च (17) समाधि (18) अपूर्व ज्ञान ग्रहण (16) श्रुस भक्ति (20) प्रवचन प्रभावना। इन बीस बोलों की उत्कृष्ट आराधना करने से जीव तीर्थङ्कर नाम कर्म उपार्जन करता है। इन वीस वोलों की विस्तृत व्याख्या छठे भाग के बीसवें बोल संग्रह में दी जायगी। __ अनेक वर्षों तफ श्रमण पर्याय का पालन करके वे देवलोक में उत्पन्न हुए। वहॉसे चव कर वे छहों मित्र भिन्न भिन्न देश के राजाओं के यहॉ राजकुमार रूप से उत्पन्न हुए। महाबल राजा का जीव देवलोक से चव कर मिथिला नगरी के राजा कुम्भ की रानी प्रभावती के गर्भ में आया। सख शय्या पर सोती हुई प्रभावती रानी ने निम्न लिखित चौदह महास्वम देखे / यथा-गज,पभ, सिंह, अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्र,सूर्य, ध्वजा, कलश,पद्म सरोवर,सागर, विमान, रत्नराशि, निधम अग्नि। स्वप्न पाठकों से स्वमों के फल को सुन कर रानी अतिहर्षित हई और गर्भ का पालन करने लगी। नौ मास पूर्ण होने पर रानी ने एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्री के जन्म से माता पिता को बहुत प्रसन्नता हुई / तीर्थङ्कर का जन्म हुआ जान कर अनेक देवी और देवों के साथ इन्द्र वहाँ उपस्थित हुए। यथाविधि जन्म कल्याण मना कर वेवापिस अपने स्थान पर चले गये। माता पिता ने पुत्री का नाम मल्लिकुँवरी रखा / पाँच धायों द्वारा लालन पालन की जाती हुई मल्लिकुंवरी सुरक्षित वेल की तरह बढ़ने लगी। जब मलिकुंवरी की अवस्था लगभग सो वर्ष की हुई तव एक समय उन्होने अवधिज्ञान द्वारा अपने पूर्वभव के छः मित्रों को देखा