________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमामा orrr- ~ ~ ~ rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror के अन्त में किया गया क्योंकि दीक्षा में वे सब से छोटे थे। रात्रि में इधर उधर माने जाने वाले साधुओं के पादसंघट्टन से मेघकुमार को नींद नहीं आई। नींद न आने से सेधकुमार प्रतिखेदित हुए और विचार करने लगे कि प्रातःकाल ही भगवान् की आज्ञा लेकर ली हुई इस प्रव्रज्या को छोड़ कर वापिस अपने घर चला जाऊँगा। ऐसा विचार कर प्रात:काल होते ही मेघकमार भगवान् के पास आज्ञा लेने को भाये / मेघकुमार के विचारों एवं उसके मनोगत भावों को फेवलज्ञान से जान कर भगवान् फरमाने लगे कि हे मेघ ! तुम इस जरा से फष्ट से घबरा गये।तुम अपने पूर्वभव को तो याद करो। पहले हाथी के भव में वन में लगी हुई दावानल को देख कर तुम भयभ्रान्त होकर वहाँ से भागने लगे किन्तु आगे जाकर तालाब के कीचड़ में बहुत बुरी तरह से फंस गये और बहुत कोशिश करने पर भी निकल न सके / इतने में एक दूसरा हाथी प्रागया और उसके दंत प्रहार से मर कर फिर दूसरे जन्म में भी हाथी हुए। एक वक्त जंगल में लगी हुई दावानल को देख कर तुम्हें जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। ऐसे दावानल से बचने के लिए गंगा नदी के दक्षिण किनारे पर एक योजन का लम्वा चौड़ा एक मण्डल बनाया। एक वक्त जंगल में फिर आग लगी उससे बचने के लिए फिर तुम अपने मण्डल (घेरा)में आये। वहाँ पहले से ही बहुत से पशु,पक्षी पाकर ठहरे हुए थे। मण्डल जीवों से खचाखच भरा हुआ था। बड़ी मुश्किल से तुम को थोड़ी सी जग मिली / कुछ समय बाद अपने शरीर को खुजलाने के लिए तुमने अपना पैर उठाया। इतने में दूसरे बलवान् प्राणियों द्वारा धकेला हुआ एक शशक (खरगोश) उस जगहमा पहुँचा। शरीर कोखुजला कर जब तुम वापिस अपना पैर नीचे रखने लगे तोएक शशक को वैठा हुया देखा। तव