________________ औजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 431 ~~rn romawrrrrr ... wrimar - . . m mm देव ने कहा- हे आर्य! मैं मकाल में वर्षाऋतु की विक्रिया (रचना) करूँगा जिससे तुम्हारी लघुमाता का दोहद पूर्ण होगा। ऐसा कह कर वह देव वापिस अपने स्थान पर चला गया। दसरे दिन देव ने वर्षाऋतु की विक्रिया की / आकाश में सर्वत्र मेघ छा गये और छोटी छोटी बूंदें गिरने लगीं। हाथी पर बैठ कर रानी धारिणी राजा के साथ वन में गई। वैभार पर्वत के पास वनक्रीड़ा करती हुई रानी अपने दोहले को पूर्ण करने लगी।दोहला पूर्ण होने पर रानी को बड़ी प्रसन्नता हुई। नौ मास पूर्ण होने पर रानी की कुक्षि से एक पुत्र का जन्म हुआ। दासियों द्वारा पुत्रजन्म की सूचना पाकर राजा को बहुत हर्ष हुआ / गर्भावस्था में रानी को मेघ का दोहला उत्पन्न हुआ था इसलिए पुत्र का नाम मेघकुमार रखा गया। योग्य वय होने पर मेघकुमार को पुरुष की 72 कलाओं की शिक्षा दी गई। युवावस्था को प्राप्त होने पर मेघकुमार का विवाह सुन्दर, सुशील और स्त्री की 64 कलाओं में प्रवीण आठ राजकन्याओं के साथ किया गया। एक समय भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के बाहर गुणशील नामक उद्यान में पधारे। भगवान् का आगमन छुनकर प्रजाजन, राजा और मेघकुमार भगवान् को वन्दना करने के लिए गये। भगवान् ने धर्मोपदेश फरमाया। उपदेश सुन कर मेघकुमार को संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया। घर आकर माता पिता से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी। बड़ी कठिनाई के साथ माता पिता से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त की। राजा श्रेणिक ने बड़े समारोह और धूमधाम के साथ दीक्षामहोत्सव किया। मेघकुमार दीक्षा लेकर ज्ञानाभ्यास करने लगे। रात्रि के समय जब सोने का वक्त आया तब मेघकुमार का विछौना सब साधुओं