________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 426 विशेष होती है। इस लिए शास्त्र अध्ययन के अभिलाषी मुमुक्ष आत्माओं को शास्त्र का अध्ययन श्रद्धा पूर्वक गुरु के पास ही करना चाहिए। इस तरह से प्राप्त किया हुआ ज्ञान ही आत्मकल्याण में विशेष सहायक होता है। (1) मेधकुमार की कथा पहला अध्ययन- विनय का स्वरूप बतलाने के लिए पहला अध्ययन कहा गया है। इसका नाम 'उत्तिप्त है। यदि कोई शिष्य अविनीत हो जाय तो उसे मीठे वचनों से उपालम्भ देकर गुरु को चाहिए कि वह उसे विनय मार्ग में प्रवृत्ति फरावे। इस प्रकार रूपदेश देने के लिए पहले अध्ययन में मेघकुमारका दृष्टान्त दिया गया है। राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम नन्दा देवी था। उसकी कुति से उत्पन्न हुआ अभयकुमार नाम का पुत्र था। वह राजनीति में बहुत चतुर था। औत्पातिकी, वैनयिफी श्रादि चारों बुद्धियों का निधान था। वह राजा फामंत्री था। श्रेणिक राजा की छोटी रानी का नाम धारिणी था। एक समय रात्रि के पिछले पहर में उसने हाथी का शुभ स्वम देखा / राजा के पास जाकर उसने अपना स्वम सुनाया। राजा ने कहा- देवि ! इस शुभस्वम के प्रभाव से तुम्हारी कुति से किसी पुण्यशाली प्रतापी बालक का जन्म होगा / यह सुन कर रानी बहुत प्र दूसरे दिन प्रातःकाल खमपाठकों को बुला कर राजा ने स्वम का अर्थ पूछा / उन्होंने बतलाया कि यह स्वमवहुत शुभ है। रानी की कुति से फिसी पुण्यशाली प्रतापी बालफ का जन्म होगा। यतनापूर्वक अपने गर्भ का पालन करती हुई धारिणी रानी समय पिताने लगी। तीसरे महीने में रानी को अफाल मेघ का दोहद (दोइला) उत्पन्न हुभा। वह सोचने लगी-विजली सहित