________________ - rrrrrr mun rrrrrrrrrr No 420 श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला ~~~~~n - प्रमाद रहित होकर गृहस्थी के यहाँवार को खोज करनी चाहिए। (18) उक्त उपदेश के प्रति आदर भाव हो इसलिए शास्त्रकार उपदेष्टा का वर्णन करते हैं__सर्व श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन केधारक,इन्द्रादि से पूजित,विशाल तीर्थ के नायक ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर ने यह उपदेश फरमाया है। (उत्तराध्ययन अध्ययन 6) 868-- दशवैकालिक प्रथम चूलिका की अठारह गाथाएं दशवैकालिक सूत्र की दो चूलिकाएं हैं। प्रथम चूलिका में 18 गाथाएं हैं। संयम से गिरते हुए साधु को स्थिर करने के लिए उन गाथाओं में अठारह यातो का निर्देश किया गया है। किसी आपत्ति के पाजाने पर साधु फा चित्त चञ्चल हो जाय और संयम के प्रति उसे अरुचि हो जाय तो संयम को छोड़ने से पहले उसे इन अठारह बातों पर विचार करना चाहिए। जिस प्रकार चञ्चल घोड़ा लगाम से और मदोन्मत्त हाथी अंनुश से वश में भा जाते हैं उसी प्रकार इन अठारह बातों का विचार करने से चञ्चल बना हुआ साधु का मन पुनः संयम में स्थिर हो जाता है। वे अठारह ये हैं(१) इस दुःखम काल में जीवन दुःख पूर्वक व्यतीत होता है। (2) गृहस्थ लोगों के कामभोग तुच्छ और क्षणस्थायी हैं। (3) इस फाल के बहुत से मनुष्य कपटी एवं मायावी हैं। (4) मुझे जो दुःख हुआ है वह बहुत काल तक नहीं रहेगा। (5) संयम को छोड़ देने पर मुझे गृहस्थों की सेवा करनी परगी। (6) वमन किए हुए भोगों का पुनः पान करना होगा। (७)ग्रारम्भ और परिग्रह का सेवन करने से नीच गतियों में ले जाने वाले फर्म बंधेगे।