________________ श्री जैन सिद्धान्न बोल संग्रह, पाचवा भाग 415 पॉचवे उद्देशे में अठारह पापस्थानों को चतुःस्पर्शी बतलाया है। (टाणाग ठाणा 1 सूत्र 48,46) (प्रवचन सारोद्धार 237 द्वार) (दशाश्रुतम्कंध छठी दशा) (भगवती श० 1 उ० 6 तथा श• 12 उ०५) 866-- चोर की प्रसूति अठारह नीचे लिखी अठारह बातें चोर की प्रसूति समझी जाती हैं अर्थात् स्वयं चोरी न करने पर भी इन बातों को करने वाला चोर का सहायक होने के कारण चोरी का अपराधी माना जाता है। वे इस प्रकार हैं भलनं कुशलं तर्जा, राजभागोऽवलोकनम् / मार्गदर्शनं शय्या, पदभङ्गस्तथैव च // विश्रामः पादपतनमासनं गोपनं तथा। खण्डस्यखादनं चैव तथाऽन्यन्माहराजिकम् / / पाद्याधुदक रज्जूनां, प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् / एताः प्रसूतयो ज्ञेयाः, अष्टादश मनीषिभिः / / (1) भलन-तुम डरो मत,मैं सब कुछ ठीक कर लूँगा, इस प्रकार चोर को प्रोत्सान देना भलन नाम की प्रसुति है। (2) कुशल- चोरों के मिलने पर उन से सुख दुःख आदि का कुशलमश्न पूछना। (3) तर्जा- हाथ आदि से चोरी करने के लिए भेजने आदि का इशारा करना। (4) राजभाग- राजा द्वारा नहीं जाने हुए धन को छिपा लेना और पूछने पर इन्कार कर देना। (5) अवलोकन-किप्ती के घर में चोरी करते हुए चोरों को देख कर चुप्पी साध लेना। (6) अमार्गदर्शन-पीछा करने वालों द्वारा चोरों का मार्ग