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श्रीठिया जैन पन्थमाला
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उपरोक्त अठारह कल्पों का यथावत पालन करने वालो विशुद्ध तप क्रिया में रत रहने वाले पुनि अविचल मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं।
(दशवैकानिक अध्ययन ६ गाथा ८--६६. ) ( समवायाग १८) ८६१-- दीक्षा के अयोग्य अठारह पुरुष ___ सब प्रकार के सावध व्यापार को छोड़ कर मुनि व्रत अङ्गीकार करने को दीक्षा कहते हैं। नीचे लिखे अठारह व्यक्ति दीक्षा के लिए भयोग्य होते हैं___ (१) वाल- जन्म से लेकर आठ वर्ष तक बालक कहा जाता है। वाल स्वभाव के कारण वह देशविरति या सर्वविरति चारित्र को अङ्गीकार नहीं कर सकता। भगवान् वज्रस्वामी ने छः माह की अवस्था में भी भाव से संयम स्वीकार कर लिया था ऐसा फहा जाता है। आठ वर्ष की यह मर्यादा सामान्य साधाओं के लिए निश्चित की गई है। पागमविहारी होने के कारण उन पर यह मर्यादा लागू नहीं होती। कुछ प्राचार्य गर्भ से लेकर भाठ वर्ष तक वाल्यावस्था मानते हैं।
(२) द्ध- सत्तर वर्ष से ऊपर वृद्धावस्था मानी जाती है। शारीरिक शक्ति के कारण वृद्ध भी दीक्षा के योग्य नहीं होते। कुछ आचार्य साट वर्ष से ऊपर वृद्धावस्था मानते हैं। यह बात १०० वर्ष की आयु को लक्ष्य करके कही गई है। कम आयु होने पर उसी अनुपात से वृद्धावस्था जल्दी मान ली जाती है।
(३) नसक-जिसके स्त्री और पुरुष दोनों वेदों का उदय हो उसे नपुंसक कहते हैं। प्रायः अशुभ भावना बाला तथा लोक निन्दा का पात्र होने के कारण वह दीक्षा के अयोग्य होता है ।
(४) क्लीव-पुरुष की माकृतिवाला नपुंसक । स्त्री वेद का तीव्र उदय होने के कारण वह दीक्षा के योग्य नहीं होता।