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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग ३६६ wwwmwww.mmmmmmmmmmmmmmmmmmwww. wom का पर्याप्त तथा संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य।
पहले के समान छः स्थानों में जाता है।
(७) सातवीं नरक में दो स्थानों से पाता है- संधी जलचर और संख्यात काल का फर्मभूमि मनुष्य (स्त्री वेद को छोड़ कर)। पाँच स्थानों में जाता है- संज्ञी तिर्यश्च का पर्याप्त ।
(८) भवनपति और व्यन्तर देवों की भागति सोलह कीपाँच संज्ञी तिर्यश्च के पर्याप्त, पॉच असंज्ञी तिर्यश्च के अपर्याप्त, संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य, असंख्यात काल का फर्मभूमि मनुष्य,अफर्मभूमि मनुष्य,प्रान्तर द्वीपिक मनुष्य, खेचर जुगलिया
और स्थलचर जगलिया। __ गति नौ स्थानों की- पाँच संज्ञी तिर्यञ्च, संख्यात साल का कर्मभूमि, पृथ्वी, पानी और वनस्पति ।
(5) ज्योतिषी तथा पहले दूसरे देवलोक में जीव नौ स्थानों से माता है-पॉच संज्ञी तिर्यञ्च, संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य, असंख्यात फाल का फर्मभूमि मनुष्य, मकर्मभूमि मनुष्य और स्थलचरजुगलिया।
नौ स्थानों में जाताई- पाँच संज्ञी तिर्यञ्च, संख्यात काल का फर्मभूमि, पृथ्वी, पानी और वनस्पति ।
(१०) तीसरे देवलोक से माठवें देवलोक तक छह की भागतिपाँच संज्ञी तिर्यश्च के पर्याप्त और संख्यात काल का कर्मभूपि मनुष्य।
इन्हीं छह स्थानों में जाता है।
(११) नवें से वाररावें देवलोक तक चार की भागति-मिथ्याहामि भविरति सम्यग्दृष्टि, देशविरति सम्यग्दृष्टि और सर्वविरति सम्यग्दृष्टि मनुष्य।
गति एक की- संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य । (१२) नवग्रेवेयक में दो की मागति-मिथ्याष्टिसाधुलिङ्गी