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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला
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८८८ गतागत के अठारह द्वार
एक गति से काल करके जीव किन किन गतियों में जा सकता है तथा फिन किन गतियों से आफर एक गति में उत्पन्न होता है इस बात के खुलासे को गतागत कहते हैं । इसके अठारह द्वार हैं
(१) पहली नरक में जीव ग्यारह स्थानों से आता है-जलचर, स्थलचर, खेचर, उर:परिसर्प, भुजपरिसर्प, इन पाँच सज्ञी विर्यञ्चों के पर्याप्त, पॉच असंज्ञी तिर्यञ्चों के पर्याप्त और संख्यात फाल फा फर्मभूमि मनुष्य।
पहली नरक से फाल करके जीव वः स्थानों में जाता है-पाँच संज्ञी तिर्थञ्च के पर्याप्त और संख्यात काल का फर्मभूमि मनुष्य ।
(२) दूसरी नरक में जीव छः स्थानों से आता है-पाँच संज्ञी तिर्यञ्च के पर्याप्त तथा संख्यात वर्ष का कर्मभूमि मनुष्य ।
इन्हीं छः स्थानों में जाता है।
(३) तीसरी नरक में पाँच स्थानों से माता है- जलचर, स्थलचर, खेचर मौर उर परिसर्प के संज्ञी पर्याप्त और संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य। पहले की तरह छः स्थानों में जाता है।
(४) चौथी नरक में चार स्थानों से भाता है-जलचर, स्थलचर और उरःपरिसर्प के संही पर्याप्त मौर संख्यात वर्ष का कर्मभूमि मनुष्य । पहले के समान छः स्थानों में जाता है।
(५)पाँचवी नरक में तीन स्थानों से प्राता है उरपरिसर्प फेसंझी पर्याप्त तथा संख्यात काल काकर्मभूमि मनुष्य।
पहले के समान स्थानों में जाता है। (६) छठी नरक में दो स्थानों से भाता है- संज्ञी जलचर