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श्री सेठिया नैन प्रबमात्रा
wrir mmmrrrrrrrrn mmmmmmmmmmmmmmmmmmm (६)द्वीन्द्रिय संयम-बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा न करना। (७)त्रीन्द्रिय संयम-तेइन्द्रिय जीवों की हिंसान करना। (८)चतुरिन्द्रिय संयम-चोरिन्द्रिय जीवों की हिंसान करना। (8) पञ्चेन्द्रिय संयम-पञ्चेन्द्रिय जीवों की हिंसान करना।
(१०) अजीव संयम-अजीब होने पर भी जिन वस्तुओं के ग्रहण से असंयम होता है उन्हें न लेना अजीव संयम है। जैसेसोना, चाँदी आदि धातुओं अथवा शस्त्र को पास में न रखना। पुस्तक, पत्र तथा दूसरे संयम के उपकरणों को पडिलेहना करते हुए यतनापूर्वक बिना ममत्वभाव के मर्यादा अनुसार रखना असंयम नहीं है।
(११)प्रेता संयम-बीज, हरी घास, जीव जन्तु भादि से रहित स्थान में अच्छी तरह देख भाल कर सोना, बैठना, चलना आदि क्रियाएं करना प्रेक्षा संयम है।
(१२) उपेक्षा संयम-गृहस्थ तथा पासत्या भादि जो पापकार्य में प्रवृत्त हो रहा हो उसे पापकार्य के लिए प्रोत्साहित न करते हुए उपेक्षाभाव बनाए रखना उपेक्षासंयम है।
(१३) प्रमार्जना संयम- स्थान तथा वस्त्र पात्र मादि को पूँज फर काम में लानाप्रमार्जना संयम है।
(१४) परिठापना संयम- माहार या वस्त्र पात्र आदि को जीवों से रहित स्थान में जयणा से शास्त्र में बताई गई विधि के अनुसार परठना परिष्ठापना संयम है । समवायांग सूत्र में इस को 'अपहत्य संयम' लिखा है।
(१५) मनःसंयम- मन में इर्ष्या, द्रोह, अभिमान आदि न रख कर उसे धर्मध्यान में लगाना मनःसंयम है।
(१६) बचन संयम-हिंसाकारी कठोर वचनको छोड़ कर शुभ पचन में प्रकृति करना वचन संयम है।