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श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, पांचवा भाग ३७५ ~~~~ • www . • ~ ~~ ~ ~ ~winwr .. rrrrmwaranwror
अपराध के लिए क्षमा माँगने लगा । दधिवाहन ने उसे अपनी छाती से लगा लिया। पिता को विछड़ा हुभा पुत्र मिला मौर पत्र को पिता। दोनों सेनाएं जो परस्पर शत्र बन कर आई थीं, परस्पर मित्र बन गई। चम्पा और कंचनपुर दोनों का राज्य एक होगया। दधिवाइन फरकण्डू को राजसिंहासन पर बिठा कर स्वयं धर्मध्यान में लीन रहने लगा।
तप.स्वाध्याय, ध्यान आदि में लीन रहती हुई पद्मावती ने प्रात्म कन्याण किया। (१) ठाणाग सुत्र (५) सती चन्दनवाला अपरनाम वसुमती (२) ज्ञाताधर्मकथाग (६) राजीमती (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (७) पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज के व्याख्यान (४) पचाशक ८७६- सतियों के लिए प्रमाणभूत शास्त्र
निम्न लिखित शास्त्र और प्राचीन ग्रन्थों में सतियों का संक्षिप्त वर्णन मिलता है(१) ब्राह्मी
आवश्यकनियुक्ति गाथा १६६ (२) सुन्दरी
" , गाथा ३४८ (३) चन्दनबाला
, गा०५२०-२१ (४) राजीमती
दशवैकालिकनिर्यक्ति अ० २ गा०८
उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २२ (५) द्रौपदी
ज्ञातासूत्र १६ वाँ अध्ययन (६) कौशल्या त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व ७ (७) मृगावती
आवश्यकनियुक्ति गा० १०४८
- दशवकालिकनियुक्ति अ० १ गा० ७६ (८) सलसा
आवश्यफनियुक्ति गा० १२८४ (8) सीता
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व ७