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भी जैन सिमान्त बोल संपह, पापयां भाग
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सभी वस्तुओं पर आपका अधिकार है उसी प्रकार श्मशान में उत्पन्न हुई सभी वस्तुओं पर मेरा अधिकार है।
करकण्डू की युक्ति और साहस भरी वात को सुन कर दधिवाहन वहुत प्रसन्न हुआ । उसने मुस्कराते हुए कहा-करकण्डू ! इस लकड़ी पर मैं तुम्हारा अधिकार मानता हूँ। श्मशान की सीमा में उत्पन्न होने के कारण यह तुम्हारी है। इसके प्रभाव से जव तुम्हें राज्य प्राप्त हो जाय तो एक गाँव इस ब्राह्मण को भी दे देना।
एक बार करकण्डू उस लकड़ी को लेकर कंचनपुर की ओर जा रहा था। उसी समय वहाँ के राजा का देहान्त होगया। राजा के न कोई पुत्र था और न उत्तराधिकारी । मन्त्रियों को इस बात की चिन्ता हुई कि राजा फिसे बनाया जाय । सपने इकडे होकर निश्चय किया कि राज्य की श्रेष्ठ हस्तिनी के सूड में हार डाल कर उसे नगर में घुमाया जाय । वह जिसके गले में हार साल दे उसी को राजा बना देना चाहिए। निश्चय के अनुसार हथिनी घूमने लगी। उसके सूंड में हार था। पीछे पीछे राजपुरुष चल रहे थे। हथिनी चक्कर लगाती हुई नगर के दूसरे द्वार पर पहुंची। उसी समय उस द्वार से करकण्डू ने प्रवेश किया। हथिनी ने माला उस के गले में डाल दी।
करकण्ड कंचनपुर का राजा बन गया। ब्राह्मण को इस बात का पता लगा । उसने करकण्ड के पास आकर गाँव मांगा। करकण्डू ने पूछा-तुम किस के राज्य में रहते हो?
ब्राह्मण ने उत्तर दिया- राजा दधिवाहन के।।
करकण्ड ने दधिवाहन राजा के नाम एक आज्ञापत्र लिखा कि इस ब्राह्मण को एक गॉव जागीरी में दो।
ब्राह्मण पत्र लेकर दधिवाहन के पास आया। उसे देख कर दधिवाइन कुपित हो गया। उसने ब्राह्मण से कहा-जाओ! कर