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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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मियों के वचनों का मैं उल्लंघन नहीं कर सकता । मैं तो आप सरीखे बड़े श्रावकों की श्राज्ञा का पालन करने वाला हूँ ।
बुद्धदास का नम्रता भरा उत्तर सुन कर जिनदास का हृदय प्रेम से भर गया। शुभ मुहूर्त में उसने सुभद्रा का विवाह उसके साथ कर दिया । कुछ समय तक बुद्धदास वहीं पर रहा। बाद में उनकी आज्ञा लेकर वह अपने घर चम्पापुरी में लौट आया । वहॉ थाने पर सुभद्रा को मालूम हुआ कि स्वयं बुद्धदास और उसका सारा कुटुम्ब बौद्धधर्मी है। बुद्धदास ने मेरे पिता को धोखा दिया है । सुभद्रा विचारने लगी कि अब क्या हो सकता है। जो कुछ हुआ सो हुआ । मैं अपना धर्म कभी नहीं छोड़ेंगी । धर्म अन्तरात्मा की वस्तु है । वह मुझे प्रारणों से भी प्यारा है । प्राणान्त कष्ट आने पर भी मैं धर्म पर दृढ़ रहूँगी । ऐसा निश्चय कर सुभद्रा पूर्व की भाँति अपना नित्यनियम आदि धार्मिक क्रियाएं करती रही ।
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उसके इन कार्यों को देख कर उसकी सासु बहुत क्रोधित हुई । ए उससे कहने लगी- मेरे घर में रह कर तेरा यह ढोंग नहीं चल सकता । तू इन सब को छोड़ दे, अन्यथा तुझे कड़ा दण्ड भोगना पड़ेगा ।
जब उसकी सासू ने देखा कि इन बातों का उस पर कुछ भी असर न पड़ा तब उसने उस पर किसी प्रकार का लाञ्छन लगा कर उसे अपने मार्ग पर लाने का निश्चय किया ।
एक दिन एक जिनकल्पी सुनिराज उधर आ निकले। भिक्षा के लिए उन्होंने शुभद्रा के घर में प्रवेश किया । भक्तिपूर्वक वन्दना कर सुभद्रा ने उन्हें आधार बहराया । 'फूस के गिर जाने से मुनिराज की यांख में से पानी गिर रहा है' यह देख कर सुभद्रा ने बढ़ी सावधानी से अपनी जीभ द्वारा फूस बाहर निकाल दिया । ऐमा करते समय सुभद्रा के ललाट पर लगी हुई कुंकुंम की बिन्दी मुनिराज से ललाट पर लग गई । उसकी सामू ने अपनी इच्छापूर्ति के