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श्री सेठिया जेन पन्धमाला
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(१०)सुभद्रा प्राचीन समय में वसन्तपुर नाम का एक रमणीय नगर था। वहाँ जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसके मन्त्री का नाम जिनदास था। वह जैन धर्मानुयायी पारह व्रतधारी श्रावफ था। उसकी पत्नी का नाम तत्त्वमालिनी था । अपने पति के समान वह पूर्ण धर्मानुरागिणी और श्राविका थी। उसकी कुति से एक महारूपवती कन्या का जन्म हुमा। इससे माता और पिता दोनों को बहुत प्रसनता हुई । जन्मोत्सव मना कर उन्होंने उसका नाम सुभद्रा रक्खा।
माता पिता के विचार,व्यवहार और रहन सहन का सन्तान पर बहुत असर पड़ता है। सुभद्रा पर भी माता पिता के धार्मिक संस्कारों का गहरा असर पड़ा। बचपन से ही धर्म की ओर उसकी विशेष रुचि थी और धर्गक्रियाओं पर विशेष प्रेम था।माता पिता की देखादेख वह भी धार्मिक क्रियाएं करने लगी। थोड़े ही समय में मुभद्रा ने मागायिक, प्रतिक्रमण, नव तत्त्व, पच्चीस क्रिया आदि फा वहुत सा ज्ञान प्राप्त कर लिया।
योग्य वय होने पर जिनदास को सुभद्रा के योग्य वर खोजने की चिन्ता हुई। सेट ने विचार किया कि मेरी पुत्री की धर्म के प्रति विशेष रुचि है इस लिए किसी जैन धर्मानुयायी वर के साथ विवाह करने से ही इसका दाम्पत्य जीवन सुखमय हो सकता है। यह सोच कर जिनदास ऐसे ही वर की खोज में रहने लगा।
वसन्तपुर व्यापार का केन्द्र था। अनेकनगरोंसे आकर व्यापारी वहाँ व्यापार किया करते थे। एक समय चम्पानिवासी वुद्धदास नाग का व्यापारी वहाँ पाया। वह बौद्ध मतावलम्बी था। एक दिन व्याख्यान मुन कर वापिस पाती हुई सुभद्रा को उसने देखा। उसने उसके विषय में पूछताछ की। किसी ने उसे बताया कि