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श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, पाचवा भाग wwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmm
का दुःख नहीं है किन्तु इससे जैन शासन कलङ्कित होता है। इस लिए मेरे सिर से जब यह फलंफ उतरेगा तभी मैं काउसग्ग पार फर अन्न जल ग्रहण करूँगा। ऐसी कठोर प्रतिज्ञा करके मुनिध्यान में विशेष दृढ़ बन गये।
शासनदेवी का आसन कंपित हुआ। उसने अवधिज्ञान द्वारा मुनि के भावों को जान लिया । वह तत्काल वहॉाई और वेगबती के उदर में शूल रोग उत्पन्न कर दिया जिससे उसे प्राणान्त कष्ट होने लगा। वह उपस्थित जनसमुदाय के सामने मुनि को लक्ष्य करके उच्च खर से कहने लगी-भगवन् ! आप सर्वथा निर्दोष हैं । मैंने आपके ऊपर मिथ्या दोष लगाया है। हे क्षमानिधे ! आप मेरे अपराध को क्षमा करें। अपना अभिग्रह पूरा हुआ जान कर मुनि ने काउसग्गपार लिया। जनता के आग्रह से मुनि ने धर्मोपदेश फरमाया । वेगवती सुलभवोधि थी। उपदेश से उसका हृदय परिवर्तित होगया। उसे धर्म पर पूर्ण श्रद्धा होगई। उसी समय उसने श्राविका के व्रत अङ्गीकार कर लिए। कुछ समय पश्चात् उसे संसार से वैराग्य हो गया । दीक्षा अङ्गीकार कर शुद्ध संयम का पालन करने लगी। कई वर्षों तक संयम का पालन कर वह पाँचवें देवलोक में उत्पन्न हुई । वहाँ से चव कर मिथिला के राजा जनक के घर पुत्रीरूप से उत्पन्न हुई। पूर्वभव में इसने मुनि पर झूठा कलंक लगाया था इसलिये इस भव में इस पर भी यह झूठा कलंक आया था।
अपने पूर्वभव का वृत्तान्त मुन कर सीता को संसार से विरक्ति होमई । उसी समय राम की आज्ञा लेकर उसने दीक्षा अङ्गीकार कर ली। कई वर्षों तक शुद्ध संयम का पालन करती रही । अपना अन्तिम समय नजदीक आया जान कर उसने विधिपूर्वक संलेखना संथारा किया और मर कर वारहवें देवलोक में इन्द्र का पद प्राप्त किया। वहॉ से चव कर कितनेक भव करके मोक्ष प्राप्त करेगी।