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श्री सेठिया जैन मन्यमाला
के पास जा पहुँचे । धोविन रात में देरी से आई थी। वह दरवाजा खटखटा रही थी। धोची उसे बुरी तरह से हाट रहा था और का रहा था कि मैं राम थोड़ा ही हूँ जिन्होंने रावण के पास रही हुई सीता को वापिस अपने घर में रत्व लिया। धोबी के इन शब्दों ने राम के हृदय को भेद डाला। उन्होंने सीता को त्यागने का निश्चय कर लिया।
दूसरे दिन राम ने सारी हकीकत लक्ष्मण से कही। लक्ष्मण ने कहा-पूज्य भ्राता आप यह क्या कह रहे हैं ?सीता शुद्ध है। वह महासती है। उसके विषय में किसी प्रकार की भी शङ्कान करनी चाहिये। राम ने कहा- तुम्हारा कहना ठीक है किन्तु लोकापवाद से रघुकुल का निर्मल यश मलिन होता है। मैं इसे सहन नहीं कर सकता।
दसरे दिन प्रातःकाल राम ने सीता को बन के दृश्य देखने रूप दोहद को पूरा करने के बहाने से रथ में बैठा कर जंगल में भेज दिया। एक भयंकर जंगल के अन्दर ले जाकर सारथी ने सीता से सारी हकीकत कही। सुनते ही सीता मूछित होकर भूमि
पर गिर पड़ी। शीतल पवन से कुछ देर बाद उसकी मूछो दर हुई। : सीता फी यह दशा देख कर सारथी बहुत दुखी हुमा किन्तु वह विवश था। सीसा को वहाँ छोड़ फर वह वापिस अयोध्या लौट माया। सीता अपने मन में सोच रही थी कि मैंने ऐसा कौन सा अशुभ कार्य किया या किसी पर झूठा कलंक चढाया है जिसके परिणाम स्वरूप इस जन्म में मुझ पर यह झूठा फलंफ लगा है।
पुण्डरीफपुर का स्वामीराजा बज्रजंघ अपने मंत्रियों सहित उस नन में हाथी पकड़ने के लिये आया था। अपना कार्य करके वापिस लौटते हुए उसने विलाप करती हई सीता को देखा । नजदीक जाकर उमने सीता से उसके दुःख का कारण पूछा । प्रधानमन्त्री ने गजा का परिचय देते हुए कहा- हे सुभगे । ये पुण्डरीकपुर के राजा वनजंघ हैं। ये परनारी के सहोदर परम श्रावक हैं। तुम