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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
वन जा रहा है। वह वीर पुरुष है। उसके लिये कुछ कठिन नहीं है फिन्तु तू बहुत कोमलाङ्गी है । तू सदा महलों में रही है। वन में शीत ताप आदि के तथा पैदल चलने के फष्ट को कैसे सहन कर सकेगी ? सीता ने कहा- माताजी! आपका कहना ठीक है किन्तु आपका आशीर्वाद मेरी सब कठिनाइयों को दूर करेगा। जिस प्रकार रोहिणी चन्द्रपा फा,विजली मेघ का चार छाया पुरुष का अनुसरण करती है उसी प्रकार पतिव्रता स्त्रियों को अपने पति का अनुसरण करना चाहिए । पति के सुरत में सुरखी और दुःख में दुखी रहना उनका परम धर्म है। इस प्रकार विनय पूर्वक निवेदन कर सीता ने कौशल्या से बन जाने की आज्ञा प्राप्त कर ली।
राम की वन आने की बात सुन कर लक्ष्मण एकदम कुपित हो गया। वह कहने लगा कि मेरे रहते हुए राम के राजगद्दी के हक को कौन छीन सकता है ? पिता जी तो सरल प्रकृति के हैं किन्तु स्त्रियाँ स्वभावतः कुटिल हुआ करती हैं। अन्यथा कैकयी अपना वरदान इस समय क्यों मांगती ? मैं राम को वन में न जाने दंगा। मैं उन्हें राजगद्दी पर बिठाऊँगा। ऐसा सोच कर लक्ष्मण राम के पाम पाया। राम ने समझा कर उसका क्रोध शान्त किया। वह भी राम के साथ वन जाने को तप्यार हो गया। तत्पश्चात् सीता मौर लक्ष्मण सहित राम बन की ओर रवाना हो गए।
एफसमय एक सघन वन में एक झोपड़ी बना कर सीता,लक्ष्मण और राम टहरे हुए थे। सीता के अद्भुत रूप लावण्य की शोभा सन फर फामातुर बना हुआ रावण संन्यासीफा वेषपना कर वहाँ आया। राम और लक्ष्मण के बाहर चले जाने पर वा झोपड़ी के पास आया और मिना माँगने लगा। मिनादेने के लिये जब सीता बाहर निकली तो रावण ने उसे पकड़ लिया भौर अपने पप्पफ विमान में विठा कर लंकाले गया। यहॉलेजाकर सीता को