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भी सेठिया जैन प्रन्यमाला
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सीमा न रही। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हुई। सीता ने परम हर्ष के साथ अपने भाग्य की सराहना करते हुए राम के गले में वरमाला डाल दी।
राजा जनक और राजा दशरथ पहले से मित्र थे। अब उनकी मित्रता और भी गहरी हो गई । राजा जनक ने विधिपूर्वक सीता का विवाह राम के साथ कर दिया । राजा दशरथ अपने पुत्र और पुत्रवधू को साथ लेकर सानन्द अयोध्या लौट आए और मुखपूर्वक समय बिताने लगे।
स्वयंवर में आए हुए दूसरे रामा लोग निराश होकर अपने अपने नगर को वापिस लौटे। विद्याधरकुमार भामण्डल कोभत्यविफ निराशा हुई। सीता की प्राप्ति न होने से वह रात दिन चिन्तित एवं उदास रहने लगा।
एक समय चार ज्ञान के धारक एफ मुनिराज भयोध्या में पधारे। राजा दशरथ अपने परिवार सहित धर्मोपदेश सुनने के लिए गया। भामण्डल को साथ लेकर श्राफाशमार्ग से गमन करता हभा चन्द्रगति भी उधर से निकला । मुनिराज को देख कर वह नीचे उतर पाया। भक्तिपूर्वफ वन्दना नमस्कार फर वह वहॉपैठ गया। 'भामण्डल अब भी सीता की अभिलाषा से संतप्त हो रहा है यह दात अपने ज्ञान द्वारा जान कर मुनिराज ने समयोचित देशना दी। प्रसंगवश चन्द्रगति और उसकी रानी पुष्पवती के तथा भामण्डल
और सीसा के पूर्वभव कह सनाये। उसी में भामण्डल और सीता का इस भव में एक साथ जन्म लेना और तत्काल पूर्वभव क वैरी एक देव द्वारा भामण्डल का हरा जाना आदि सारा वृत्तान्त भी कह सुनाया। इसे सुन कर भामण्डल को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। मच्छित होकर वह उसी क्षण भूमि पर गिर पड़ा। थोड़ी देर बाद उसकी मूर्छा दर हुई । जिस तरष्ठ मुनिराज ने कहा था उसी प्रकार उसने अपने पूर्वभव का सारा वृत्तान्त जान लिया।