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दगनीदनाने परामक नेपालमान पानगी पूला पर पावर
कमान सीमा पक्षान रामाने विविधांगमाया गाम यस पान भंगा निकननि र मनकामी मोर मामान स्वरम माटर में उनिहुमागमा वाम राम, आदि सपने पुन मायामपनं पर मामदल .साथ महापारे । सभी जाया गया नया गाने संगमागमा जनानी सौर मंकन यर या गजा गों गोमानी नाई। इसी समय एकमतानी माय गन्दरवनापमान लगाना स्वगंगामा सदभत पानावर यो देय कर गित सभी गमागार
मार मी मालिक लिये अपने अपने प्रदय का ध्यान पारने लगे।
सना जनक मी प्रनिता एन कर 3 ए राजमार्ग में में मायबार्ग बार्ग में धनग फे पास आकर थपना पन मनमान लग किन्न धना पर वाण बहाना को दूर रहा. इस पनुप को हिलाने में नामार्थ नए। जो गजकुमार पर गर्व के साथ अफर फर पनप में पास मातेथे सरल होनाने पर चेलम्जा मिर नीना करके वापिस अपने सामन पर जा बैठते थे। राजकुमागे की यह दशा देग्य फार रागा जनक यं इदय में चिन्ता उत्पन्न हुई। वह सोचने लगायया नत्रियों का बल पराक्रम ग हो चुका है ? क्या मेरी प्रतिमा पूरी न होगी? क्या मीता फारिवाहन हो सकेगा? उस उदग में इस प्रकार के संकल्प रिफन्प उठ रहे थे । उतने ही में काकुत्स्थकुलदीपक दशरथनन्दन गम अपने मामन से उठे। धनप के पास माफर जनायास ही उन्होंने धनप को उठा फर उस पर वाण चढ़ा दिया। यह देख कर राजा जनक फी प्रसन्नता की