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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग
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पाँच पाँच धायमातामों की देखरेख में सभी पुत्र धीरे धीरे चढ़ने लगे। नाग रथिक का घर पुत्रों के मधुर शब्द, सरल हँसी तथा वालक्रीडाओं से भर गया। सभी बालक एक से एक बढ़ कर सुन्दर थे। उन्हें देख कर माता पिता के हर्ष की सीमा न रही। योग्य अवस्था होने पर सभी को धर्म, कर्म और शस्त्र सम्बन्धी शिक्षा दीगई। सभी कुमार पुरुष की कलाओं में प्रवीण हो गए
और राजा श्रेणिक की नौकरी करने लगे। युवा अवस्था प्राप्त होने पर नाग रथिक ने कुलीन और गुणवती कन्यामों के साथ उनका विवाह कर दिया।
एक बार राजा श्रेणिक के पास कोई तापसी (संन्यासिनी) एक चित्र लाई । वह चित्र वैशाली के राजा चेटक की सुज्येष्ठा नामक पुत्री का था। उसे देख कर श्रेणिक के मन में उससे विवाह करने की इच्छा हुई। पिता की इच्छा पूरी करने के लिए प्रमय कुमार पणिफ का वेश बना कर वैशाली में गया। वहाँ जाकर राजमहल के समीप दुकान कर ली। उसकी दुकान पर सुज्येष्ठा की एक दासी मुगन्धित वस्तुओं को खरीदने के लिए भाने लगी। अभयकुमार ने एक पट पर श्रेणिक का चित्र बना रक्खा था । जिस समय दासी दुकान पर आती वह उस चित्र की पूजा करने लगता। एक बार दासी ने पूछा- यह किस का चित्र है?
मैं यह नहीं बता सकता, अभयकुमारने उत्तर दिया। दासी के बहुत आग्रहपूर्वक पूछने पर अभयकुमार ने कहा- यह चित्र राजा श्रेणिक का है।
दासी ने सारी बात सुज्येष्ठा से कही। मुज्येष्ठा नेदासी से कहा ऐसा प्रयत्न करो जिससे इस राजा के साथ मेरा विवाह होजाय। दासी ने जाकर यह वात अभयकुमार से कही। इस पर अभय कुमार ने एक सुरंग तैयार कराई और श्रेणिक महाराज को कह