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श्री सेठिया जैन मन्यमाला
राजा दशरथ ने कैकयी से कहा- हे पिये! तुम्हारे सारथीपन के कारण ही मेरी विजय हुई है। मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम कोई परमांगो। कैकयी ने उत्तर दिया- स्वामिन् ! समय भावेगा तब मॉग लँगी। अभी आप इसे अपने ही पास धरोहर की भाँति रखिए। इसके पश्चात् राजा दशरथ कैकयी को लेकर अपने नगर में चले आए। कुछ समय बाद उसने सर्वाङ्गसुन्दरी राजकुमारी सुमित्रा (मित्राभू, मशीला) और सुप्रभा के साथ विवाह किया। __रानियों के साथ राजा दशरथ सुखपूर्वक अपना समय बिताने लगे। रानी कौशल्या में अनेक गुण थे। उसका स्वभाव बड़ा सीधा सादा और सरल था । सौतिया डाह तो उसके अन्दर नाम मात्र को भी न था। कैकयी,सुप्रभाऔर सुमित्रा को वह अपनी छोटी वहने मान कर उनके साथ बड़े प्रेम का व्यवहार करती थी। सद्गुणों के कारण राजा ने उसे पटरानी बना दिया।
एक समय रात्रि के पिछले पहर में कौशल्याने बलदेव के जन्म सूचक चार महास्वम देखे। उसने अपने देखे हुए स्वम राजा को सुनाये । राजा ने कहा-प्रिये ! तुम्हारी कुति से एक महान् प्रतापी पुत्र का जन्म होगा। रानी अपने गर्भ का यत्र पूर्वक पालन करने लगी। गर्भस्थिति पूरी होने पर रानी ने पुण्डरीक कमल के समान वर्ण वाले पुत्र को जन्म दिया।
पुत्र जन्म से राजा दशरथ को अत्यन्त हर्ष हुमा। प्रजा खुशियों मनाने लगी। अनेक राजा विविध प्रकार की भेटें लेकर राजा दशरथ की सेवा में उपस्थित होने लगे। खजाने में पद्मा (लक्ष्मी) की बढ़त वृद्धि हुई, इससे राजा दशरथ ने पुत्र कानाम परखा। लोगों में ये राम के नाम से प्रख्यात हुए । ये बलदेव थे।
कुछ समय पश्चात् रानी सुमित्रा ने एक रात्रि के शेष भाग में पमुदेव के जन्म सूचक सात महाखम देखे। समय पूरा होने पर उसने