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रात मैंने कुम्हार के घर में आप सभी के चरणों में सोकर बिताई थी । उस समय मुझे सुहागरात से कम आनन्द न हुआ था । इस लिए मेरी बात तो छोड़िए । अपने चारों भाइओं के विषय में विचार कीजिए। इन्हीं के लिए आप वन्धन में फँसे । इन्हीं के लिए आप ने यज्ञ किया और इन्हीं के लिए आप इन्द्रप्रस्थ के राजा बने । जिन से शत्रु थर थर काँपते हैं ऐसे आपके भाई पेट भरने के लिए जंगलों में रखड़ रहे हैं। क्या इस बात का आप को खयाल है ? कभी आपको इस बात का विचार भी आता है ?
मापन सिद्धान्त बाल समझ, पाचवा भाग
युधिष्ठिर आता तो है किन्तु
द्रौपदी- नहीं, नहीं, यह विचार आप को नहीं आता । भरे दरबार में आपने अपनी स्त्री को जुए की बाजी पर रक्खा। आप की आँखों के सामने उसके बाल खींचे गए। कपड़े खींच कर उसे नंगी करने का प्रयत्न किया गया । उसे अपमानित किया गया। हम को शाप दिलाने की इच्छा से दुर्वासा ऋषि को बड़े परिवार के साथ यहाँ भेजा गया । दुर्योधन का बहनोई मुझे यहाँ से उठा ले गया। लाख का घर बना कर हम सब को जला डालने का प्रयत्न किया गया। फिर भी आप को दया आ रही है। आप का मन दुर्योधन को क्षमा करने का हो रहा है। महाराज ! मैं उन सब बातों को नहीं भूल सकती । दुःशासन के द्वारा किया गया अपमान मेरे हृदय में काँटे के समान चुभ रहा है। सच्चे हृदय से समझाने पर भी वह नहीं मानेगा। युद्ध के बिना मैं भी नहीं मान सकती । भाप की क्षमा क्षमा नहीं है । यह तो कायरता है। क्षत्रियों में ऐसी क्षमा नहीं होती । फिर भी यदि आप इस कायरता पूर्ण क्षमा को ही धारण करना चाहते हैं तो स्पष्ट कह दीजिए। आप संन्यास धारण कर लीजिए। हम शत्रुओं से अपने आप निपट लेंगे। पहले उनका संहार करके राज्य प्राप्त करेंगे, फिर आप के पास आकर संन्यास
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