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श्री मेठिया चेन ग्रन्पमाला ~~mrammmmmmmmmmmmmmmmmmm अधिक हानि आपकी ही हुई है। उसके लिए पश्चात्ताप करके आत्मा को शद बनाइए। पश्चात्तापकी आग में पाप कर्म भस्म हो जाते हैं । भविष्य के लिए पाप से बचने की प्रतिज्ञा कीजिए। अपने मन को शमध्यान में लगाए रखिए जिससे आत्मा का उत्तरोत्तर विकास होता जाय। तीसे सो वयणं सुच्चा, सजईए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइयो ।
अर्थात्- जिस प्रकार अंकुश द्वारा हाथी ठिकाने पर भा जाता है उसी प्रकार सती राजीमती द्वारा कहे हुए हित वचनों को सुन कर रथनेमि धर्म में स्थिर हो गये।
स्थनेमि ने भविष्य के लिए संयम में दृढ़ रहने की प्रतिज्ञा पी।राजीमती ने उसे संयम के लिए फिर प्रोत्साहित किया और गुफासे निकल कर अपना रास्ता लिया। आगे चल कर उसे दूसरी साचियाँ भी मिल गई। सब के साथ वह पहाड़ पर चढ़ने लगी।
धीरे धीरे सभी साध्धियाँ भगवान् अरिष्टनेमि के पास जा पहुँची। राजीमती की चिर अभिलाषा पूर्ण हुई। आनन्द से उस का हृदय गद्गद् हो उठा। उसने भगवान् के दर्शन किए। उपदेश मुना । आत्मा को सफल बनाया । भगवान् के उपदेशानुसार कठोर तप और संयम की आराधना करने लगी। फल स्वरूप उसके सभी कर्म शीघ्र नष्ट हो गए । भगवान् के मोक्ष पधारने से चौपन दिन पहले वह सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गई।
वासना रहित सच्चा प्रेम,पूर्णब्रह्मचर्य, कठोर संयम,उग्र तपस्या भनुपम पतिभक्ति तथा गिरते हुए को स्थिर करने के लिए राजीमती का श्रादर्श सदा जाज्वल्यमान रहेगा।
(पूज्य श्रीजवाहरलालजी महारान के व्याख्यान में पाये हुए राजीमती चरित्र के माधार पर।