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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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१ उसे ब्रह्मचर्य के उच्च आदर्श से गिराने में कितना सुख मानते हैं ? इनकी दृष्टि में ब्रह्मचर्य जीवन जीवन ही नहीं है। संसार में समझदार और बुद्धिमान कहे जाने वाले मनुष्य भी ऐसे विचारों से घिरे हुए हैं। मेरे लिए इस विचारधारा में वह जाना श्रेयस्कर नहीं है । मैं दुनिया के सामने त्याग और ब्रह्मचर्य का उच्च आदर्श रखना चाहता हूँ किन्तु इस समय माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करना या मान लेना दोनों मार्ग ठीक नहीं हैं । यह सोच कर उन्होंने बात को टालने के अभिप्राय से कहा- आप लोग धैर्य रक्खें। अभी विवाह का अवसर नहीं है। अवसर थाने पर देखा जाएगा। समुद्र विजय और शिवादेवी इसके आगे कुछ न बोल सके। वे उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे जिस दिन कुमार नेमिनाथ दूल्हा बनेंगे। सिर पर मौर बॉध कर विवाह करने जायेंगे |
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समुद्रविजय और शिवादेवी कुमार नेमिनाथ से विवाह की स्वीकृति लेने का प्रयत्न कई बार कर चुके थे किन्तु कुमार सदा टालमटोल कर दिया करते थे । अन्त में उन्होंने श्रीकृष्ण से सहायता लेने की बात सोची । एक दिन उन्हें बुला कर कहा - वत्स ! तुम्हारे छोटे भाई अरिष्टनेमि पूर्ण युवक हो गए हैं। वे अभी तक अविवाहित ही हैं । हमने उन्हें कई बार समझाया किन्तु वे नहीं मानते । तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव का भाई अविवाहित रहे यह शोभा नहीं देता । इस विषय में आप भी कुछ प्रयत्न कीजिए ।
श्रीकृष्ण ने प्रयत्न करने का वचन देकर समुद्रविजय और शिवादेवी को सान्त्वना दी। इसके बाद वे अपने महल में आकर कोई उपाय सोचने लगे । उन्हें विचार में पड़ा देख कर सत्यभामा ने चिन्ता का कारण पूछा। विवाह सम्बन्धी वातों में स्त्रियॉ विशेष चतुर होती हैं, यह सोच कर श्रीकृष्ण ने सारी बात कह दी ।
उन दिनों वसन्त ऋतु थी । वृक्ष नए फूल और पत्तों से लदे