________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
२४३
शतानीक व दधिवाहन को अपना मित्र मानने लगा था। उसके प्रति किए गए अपराध से मुक्त होने के लिए चम्पा का राज्य उसे वापिस सौंपना चाहता था । उसने दधिवाहन को खोज कर सन्मानपूर्वक लाने के लिए आदमी भेजे ।
शतानीक के आदमी खोजते हुए दधिवाहन के पास पहुँचे। उसे नम्रतापूर्वक सारा वृत्तान्त सुनाया। फिर शतानीक की ओर से चलने के लिए प्रार्थना की। धारिणी की मृत्यु सुन कर दधिवाहन को बहुत दु:ख हुआ, साथ ही चन्दनबाला के आदर्श कार्यों से प्रसन्नता । वह वन में रह कर त्यागपूर्वक अपना जीवन बिताना चाहता था। राज्य के भार को दुबारा अपने ऊपर न लेना चाहता था फिर भी शतानीक के सामन्तों का बहुत व्याग्रह होने के कारण शतानीक द्वारा भेजे हुए वाहन पर बैठ कर वह कौशाम्बी की ओर चलां ।
राजा दधिवाहन का स्वागत करने के लिए कौशाम्बी को विविध प्रकार से सजाया गया । उनके श्राने का समाचार सुन कर हर्षित होता हुआ शतानीक अपने सामन्त सरदारों के साथ अगवानी करने के लिए सामने गया । समीप आने पर दोनों अपनी अपनी सवारी से उतर गए। शतानीक दधिवाहन के पैरों में गिर कर अपने अपराधों के लिए बार वार क्षमा मांगने लगा । दधिवाहन ने उसे उठा कर गले से लगाया और सारी घटनाओं को कर्मों की विडम्वना बता कर उसे शान्त किया। दोनों शत्रुओं में चिर काल के लिए प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गया। इसमें शतानीक या दधिवाहन की विजय न थी किन्तु शत्रुता पर मित्रता की और पाप पर धर्म की विजय थी ।
सती चन्दनबाला के पिता राजा दधिवाहन के आगमन की बात भी छिपी न रही । उनका दर्शन करने के लिए आई हुई जनता से सारा मार्ग भर गया । दधिवाहन और शतानीक को