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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वहीं रहती, इस लिए न आपको दण्ड लेने की आवश्यकता हैन रथी पिता को। चन्दनवाला ने रथी के सुधरने का सारा वृत्तान्त सुनाया और राजा से कहा- मैं इनकी पुत्री हूँ। मेरे लिए ये, आप और सेठजी तीनों समान रूप से आदरणीय हैं। ये आपके भाई हैं।
शतानीक रथी के साहस पर भाश्चर्य कर रहा था।चन्दनबाला के उपदेश ने उसमें क्रान्ति उत्पन्न कर दी। वह रथी के पास गया
और उसे छाती से लगा कर कहने लगा-आज से तुम मेरे भाई हो। मैं तुम्हारे समस्त अपराध क्षमा करता हूँ।
राजा और एक अपराधी के इस भाईचारे को देख कर सारी जनता आनन्द से गद्गद हो उठी। __ शतानीक ने चन्दनवाला से फिर प्रार्थना की-बेटी! महल तो निर्जीव हैं, इसलिए उनमें किसी प्रकार कादोप नहीं हो सकता।दोप तो मुझ में था, उसी के कारण सारा वातावरण दूषित बना हुआ था। जब मापने मुझे पवित्र कर दिया तो महल अपने आप पवित्र होगए, इसलिए अब आप वहाँपधारिए। आपके पधारने से वातापरण और पवित्र हो जाएगा। - चन्दनवाला ने सेठ से अनुमति लेकर जाना स्वीकार कर लिया। सेठ के आग्रह से राजा, रानी, रथी और रथी की स्त्री ने उसके घर भोजन किया । चन्दनवाला ने तेले कापारणा किया।
राजा, रानी, सेठ, सेठानी, रथी और रथी की स्त्री के साथ चन्दनवाला महल को रवाना हुई। नगर की सारी जनता सती का दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ी । चन्दनवाला योग्य स्थान पर रखड़ी रह कर जनता को उपदेश देती हुई राजद्वार पर या पहुंची। चन्दनवाला के पहुँचते ही महलों में धार्मिक वातावरण छा गया। जहाँ पहले लूटमार और व्यभिचार की बातें होती थीं, वहाँ अव घर्यचर्चा होने लगी।