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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाना ~ ~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmwamerrrrrrrrrrrrrrrrr . तो श्रापको क्यों विकना पड़ता ? अगर राजा दधिवाहन के जात ही मैंने उनके परिवार का खयाल किया होतातोश्रापको इतना कष्ट क्यों उठाना पड़ता तथा आपकी माता कोप्राण क्यों त्यागने पढ़ते ? इन सब कार्यों के लिए दोष मेरा ही है। मुझे अपने किए पर पश्चात्ताप हो रहा है। उन पापों के लिए मैं लज्जित हूँ। यह कहते हुए शतानीक की ऑखें डबडवाआई। उसके हृदय में महान् दुःरव हो रहा था।
चन्दनवाला नेशतानीक कोसान्त्वनादेते हुए कहा-पिताजी! पश्चात्ताप करने से पाप कम हो जाता है। आपकी आज्ञा से जिन व्यक्तियों का स्वत्व लूटा गया है,उनका खत्व वापस लौटादीजिए। भविष्य में ऐसा पाप न करने की प्रतिज्ञा कर लीजिए, फिर श्राप पवित्र हो जाएंगे। आज से यह समझिए कि राज्य आपके भोगविलास के लिए नहीं है किन्तु आप राज्य तथा प्रजा की रक्षा करने के लिए हैं। अपने कोशासन करने वाला न मान कर प्रजा की रक्षा तथा उसकी सुरवद्धि के लिए राज्य का भार उठाने वाला सेवक मानिए फिर राज्य आपके लिए पाप का कारण न होगा। अपनी शक्ति का उपयोग दसरों पर अत्याचार करने के लिए नहीं, किन्तु दीन दुखी जनों की रक्षा के लिए कीजिए । शतानीक ने चन्दनबाला की सारी बातें सिर झुका कर मान ली।
इसके साथ साथ आप पुराने सब अपराधियों को जमा कर दीजिए। चाहे वह अपराध उन्होंन आपकी आज्ञा से किया हो या बिना आज्ञाके, किसी को दण्ड मत दीजिए। चन्दनवाला ने सब को अभय दान देने के उद्देश्य से कहा।
शतानीक ने उत्तर दिया-बेटी ! मैं सभी को क्षमा करता हूँ किन्तु जिन अपराधियों ने कुलाननाओं का सतीत्व लूटा है, जिसके कारण आपकी माता को प्राण त्याग और श्रापको महान् कष्ट