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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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भाप को इन सब बातों का कुछ भी पता नहीं। महल में बैठ कर भाप मजा पर अत्याचार करने, उसकी गाढ़ी कमाई को लूट कर अपने भोगविलास में लगाने तथा निर्दोष जनता को सताने का विचार करते हैं, प्रजा के दुःख को दूर करने का नहीं । क्या यही राजधर्म है ? क्या यही भापका कर्तव्य है ? क्या कभी भाप ने सोचा है कि पाप का फल हर एक को भोगना पड़ता है ?
जिस महल में रहते हुए भापके विचार ऐसे गन्देहो गए उसमें नाना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता। इस लिए क्षमा कीजिए। यहॉ पर रह कर मुझे भगवान् महावीर के पारणे का लाभ प्राप्त हुभा। महलों में यह कभी नहीं हो सकता था।
रानीमृगावतीशतानीक को समय समय पर हिंसामधान कार्यों से बचने तथा प्रजा का पुत्र के समान पालन करने के लिए समझाया करती थी किन्तु उस समय वह न्याय और धर्मका उपहास किया करता था। चन्दनबाला के उपदेश का उस पर गहरा असर पड़ा। उत्तर में वह कहने लगा- हे सती! आपका फहना ययार्थ है। मैंने महान् पाप किए हैं। जनहत्या, मित्रद्रोह भादि बड़े से बड़ा पाप करने में भी मैंने सोच नहीं किया। मैं राजाओं का जन्म युद्ध, दमन, शासन और भोगविलास के लिए मानता था। मेरी ही अव्यवस्था के कारण आपकी माता को प्राण त्यागने पड़े और भापको महान् कष्ट उठाने पड़े। मैं इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ था कि मेरी भाज्ञा का इस प्रकार दुरुपयोग होगा। मैंने 'चम्पा को लूटने की आज्ञा दी थी किन्तु स्त्रियों के लूटे जाने, उनका सतीत्व नष्ट होने भादि का मुझे बिल्कुल खयाल न था। मेरी भाशा की भोट में इस भयङ्कर अत्याचार के होने कीवातमुझमाज हीमालूम पड़ी है। इसके लिए मैं ही अपराधी हूँ।
अगर मेरी नगरी में दासदासीके क्रय विक्रय कीप्रथान होती