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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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के लिए मैं उनकी कृतज्ञ हूँ।
सामन्तों ने बहुत अनुनय विनय की किन्तु चन्दनवालाने पाप से परिपूर्ण राजमहलों में जाना स्वीकार न किया। उसने सामन्तों को समझा बुझा कर वापिस कर दिया। सामन्तों के खाली हाथ वापिस लौट आने पर गजा और रानी ने चन्दनवालाकोलाने के लिए स्वयं जाने का निश्चय किया।
राजा और रानी की सवारी बड़े बड़े सामन्त और उमरावों के साथ धनावह सेठ के घर चली। नगर में बात फैलने से बहुत से नागरिक और सेठ साहूकार भी सवारी के साथ हो लिए।सेठ के घर बहुत बड़ी भीड़ जमा हो गई। पास पहुँचने पर राजा और रानी सवारी से उतर गए।
चन्दनवाला के पास जाकर राजा ने कहा- वेटी ! मुझपापी को क्षमा करो।मैंने भयङ्कर पाप किए हैं। तुम्हारे सरीखी सती को कष्ट में डाल कर महान् अपराध किया है। तुम देवी हो । प्राणियों को क्षमा करने वाली तथा उनके पाप को धो डालने वाली हो। तुम्हारी कृपा से मझ पापी का जीवन भी पवित्र हो जायगा इस लिए महल में पधार कर मुझे कृतार्थ करो।
चन्दनवाला ने दोनों को प्रणाम करके उत्तर दिया- आप मेरे पिता के समान पूज्य हैं । अपराध के कारण मैं आपको अनादरणीय नहीं समझ सकती। आपकी आज्ञा मेरे लिए शिरोधार्य हैकिन्तु आप स्वयं जानते हैं कि विचारों पर वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। जिन महलों में सदा लूटने खसोटने तथा निरपराधों पर अत्याचार करने का ही विचार होता है उसमें जाना मेरे लिए फैसे उचित हो सकता है। जहाँ का वातावरण मेरी भावना
और विचारों के मर्वथा प्रतिकृल हो वहाँ मैं कैसे जाऊँ? आपके भंज हुए सामन्त भी मेरे लिए आप ही के समान श्रादरणीय हैं।