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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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होने लगा। चन्दननाला को वापिस लाने का प्रयव व्यर्थ समझ कर उसने निश्चय किया-मैं भी माज से चन्दनबाला के समान ही आचरण करूँगी। उसी के समान घर के सारे काम, नम्रतापूर्ण व्यवहार तथा ब्रह्मचर्य का पालन करूँगी।भोगविलास,वासनाओं तथासभी पुरी बातों से दूर रहूँगी। इन बीस लाख मोहरों को अलग ही पड़ी रहने दूंगी। अपने काम में न लाऊँगी। . . ‘रथी की स्त्री का स्वभाव एक दम बदल गया। उसे देख कर रथी और पड़ोसियों को भाश्चर्य होने लगा।
भगवान महावीर के पारणे की बात सुनकर रथी की स्त्री ने भी चन्दनवाला के दर्शन करने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। रथी को यह जान कर बड़ी प्रसन्नता हुई। दोनों चन्दनवाला के दर्शनों के लिए धनावह सेठ के घर की ओर रवाना हुए।
वेश्या भी सारा हाल सुन कर चन्दनवाला के पास चली। रथी की स्त्री और वेश्या दोनों चन्दनबाला के पास पहुँच कर अपने अपराधों के लिए पश्चात्ताप करने लगीं। चन्दनवालाने सारा दोष अपने कर्मों काबता कर उन्हें शान्त किया। रथी और सेठ भाई भाई के समान एक दूसरे से मिले । रथी की स्त्री और वेश्या ने अपना जीवन सुधारने के लिए चन्दनबाला का बहुत उपकार माना।
राजा शतानीक की रानी ने भी सारी बातें सुनीं। अपनी बहिन की पुत्री के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के लिए उसने अपने पति कोही दोषी समझा। उसने राजाशतानीक कोबुला
: इतिहास से पता चलता है कि दधिवाहन राजा की तीन रानियां थींप्रभया,पद्मावती भौर धारिणी । जिस समय का यह वर्णन है उस समय केवल धारिणी यो । प्रभया मारी गई थी भोर पद्मावती दीक्षा ले चुकी थी। मृगावती मोर पद्मादती दोनों महाराजा चेटक (चेड़ा) की पुपियाँ थीं । वे दोनों सगी वहनें थीं और धारिणी पद्मावती की सपन्नी थी। इसी सम्बन्ध में मृगावती चन्दनवाला की मौसी थी।