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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
सेठजी नहीं चाहते थे कि एक सती स्त्री से जिसे अपनी पुत्री मान लिया है, पैर धुलवाए जॉय । उन्होंने चन्दनवाला से बहुत कहा कि पैर धोने का कार्य उसके योग्य नहीं है किन्तु चन्दन वाला सेवा के कार्य को छोटा न मानती थी। वह इसे उच्च और प्रदर्श कर्तव्य समझती थी । पिता के पैर धोना वह अपना परम सौभाग्य मानती थी । उसने सेठजी को मना लिया और पैर धोने बैठ गई ।
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पैर धोते समय चन्दनबाला यह सोच कर बहुत प्रसन्न हो रही थी कि उसे पितृसेवा का अपूर्व अवसर मिला । सेठजी चन्दनवाला को अपनी निजी सन्तान समझ कर वात्सल्य प्रेम से गद्गद हो रहे थे। उनके मुख पर अपत्यस्नेह स्पष्ट झलक रहा था । चन्दनबाला और सेठ दोनों के हृदयों में पवित्र प्रेम का संचार हो रहा था।
पैर धोते समय सिर के हिलने से चन्दनवाला के बाल उसके पर आ रहे थे जिससे उसकी दृष्टि अवरुद्ध हो जाती थी। सेठजी ने उन वालों को उठा कर पीछे की ओर कर दिया ।
मूला इस दृश्य को देख रही थी । हृदय मलीन होने के कारण प्रत्येक बात उसे उल्टी मालूम पड़ रही थी । सेठ को चन्दनवाला के केश ऊपर करते देख कर वह जल भुन कर रह गई । उसे विश्वास हो गया कि सेठ का चन्दनबाला के साथ अनुचित सम्बन्ध है । उसे घर से निकाल देने के लिए वह उपाय सोचने लगी ।
मूला का व्यवहार चन्दनबाला के प्रति बहुत कठोर हो गया । उसके प्रत्येक कार्य में दोष निकाले जाने लगे। वात वात पर डाट पड़ने लगी, किन्तु चन्दनवाला इस प्रकार विचलित होने वाली न थी। वह मूला की प्रत्येक वात का उत्तर शान्ति और नम्रता के साथ देती। अपना दोष न होने पर भी उसे मान लेती और क्षमा याचना कर लेती । मूला झगड़ा करके वसुमती को निकालने में सफल न हुई । वह कोई दूसरा उपाय सोचने लगी ।