________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
. है उनकी आज्ञा मिलने पर मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा ।
1
ब्राह्मी भरत के पास आई । उसके सामने अपनी दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की । भरत ने साधुओं के कठिन मार्ग को बता कर ब्राह्मी को दीक्षा न लेने के लिये समझाना शुरू किया किन्तु ब्राह्मी अपने विचारों पर दृढ रही । भरत ने जब अच्छी तरह समझ लिया कि ब्राह्मी अपने निश्चय पर अटल है, उसे कोई भी विचलित नहीं कर सकता तो उसने प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा दे दी । भरत महाराज ब्राह्मी को साथ लेकर भगवान् के पास आए और कहने लगे
भगवन् ! मेरी बहिन ब्राह्मी दीक्षा अंगीकार करना चाहती है । इसने योग्य शिक्षा प्राप्त की है। संसार में रहते हुए भी विषय वासना से दूर रही है । सब प्रकार की सुख सामग्री होने पर भी इसका मन विषय भोगों में नहीं लगता । आपका उपदेश सुन कर इसका संसार से मोह हट गया है। यह जन्म, जरा और मृत्यु के दुःखों से छुटकारा पाना चाहती है, इसी लिए इसने दीक्षा लेने का निश्चय किया है। दीक्षा का मार्ग कठोर है, यह बात इसे अच्छी तरह मालूम है | इसमें दु:ख और कष्टों को सहन करने की पर्याप्त शक्ति है। संयम अंगीकार करने के बाद यह चारित्र का शुद्ध पालन करेगी, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। इसकी दीक्षा के लिए मेरी आज्ञा है। इसे दीक्षा देकर मुझे कृतार्थ कीजिए। मैं आपको अपनी बहिन की भिक्षा देता हूँ, इसे स्वीकार करके मुझे कृतकृत्य कीजिए । सव के सामने भरत महाराज के ऐसा कहने पर भगवान् ने ब्राह्मी को दीक्षा दे दी।
१६.०
AANAA
(२) सुन्दरी
ब्राह्मी को दीक्षित हुई जान कर सुन्दरी की इच्छा भी दीक्षा लेने की हुई किन्तु अन्तराय कर्म के उदय से भरत ने उसे आझा नदी । श्राज्ञा न मिलने से वह संयम अंगीकार न कर सकी ।