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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१४) चौदहवें स्वम में महामूल्य रत्न को तेज हीन देखा।
फल- भारतवपे के साधुओं में चारित्र रूपी तेज घट जाएगा। वेकलह करने वाले, झगड़ालू, अविनीत. ईर्ष्यालु, संयम में दुःख समझने वाले, आपस में प्रेम भाव थोड़ा रखने वाले,लिंग, प्रवचन और साधर्मिकों का अवगुण निकालने वाले, दूसरे की निन्दातथा अपनी प्रशंसा करने वाले, संवेगधारी श्रुतधारी तथा सच्चे धर्म के मरूपफ साधुओं से ईर्ष्या करने वाले अधिक हो जाएंगे।
(१५)पन्द्रहवें स्वम में राजकुमार को बैल की पीठ पर चढ़े देखा। फल-क्षत्रिय राजा जिनधर्म को छोड़ कर मिथ्यात्व स्वीकार कर लेंगे। न्यायी पुरुष को नहीं मानेंगे। नीच की बातें अच्छी लगेंगी। कुबुद्धि को अधिक मानेंगे तथा दुर्जनों का विश्वास करेंगे। (१६)सोलहवेंखम में दोकाले हाथियों को युद्ध करते देखा।
फल- अतिष्टि, अनावृष्टि तथा अकालदृष्टि अधिक होगी। पुत्र और शिष्य आज्ञा में नहीं रहेंगे। देव गुरु तथा माता पिता की सेवा नहीं करेंगे।
(व्यवहारचूलिका) ८७४-महावीर की वसति विषयक १६ गाथाएं ___ आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध,नवम अध्ययन दूसरे उद्देशे में सोलह गाथाएं हैं। उनमें भगवान् महावीर ने विहार करते हुए जिन जिन स्थानों पर निवास किया और जैसे आचरण किया उनका वर्णन है। गाथाओं काभावार्थ नीचे लिखे अनुसार है
(१) विहार करते समय भगवान् महावीर ने जिन जिन स्थानों पर निवास किया तथा जिन शयन और श्रासनों का सेवन किया उन्हें बताइए।' जम्वृ स्वामी द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर सुधर्मा खामी ने कहना शुरू किया
(२) भगवान किसी समय दीवार वाले सूने घरों में, सभागृह (गॉव में जो स्थान पञ्चायत मादि के लिए अथवा किसी भाग