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श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला
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देना । इसके तीन भेद हैं- स्वामिविषयक, प्रभुविषयक और स्तेनविषयक | ग्राम का मालिक स्वामी और अपने घर का मालिक प्रभु कहलाता है। चोर और लुटेरे को स्तेन कहते हैं। इनमें से कोई किसी से कुछ छीन कर साधुजी को दे तो क्रमशः तीन दोष लगते हैं। (१५) अनिसृष्ट- किसी वस्तु के एक से अधिक मालिक होने पर सब की इच्छा के बिना देना अनिसृष्ट है ।
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(१६) अध्यनपूरक - साधुओं का आगमन सुन कर आपण में अधिक ऊर देना अर्थात् अपने लिये बनते हुए भोजन में साधुओं का आगमन सुन कर उनके निमित्त से और मिला देना । नोट- उद्गम के सोलह दोषों का निमित्त गृहस्थ अर्थात् देने वाला होता है।
(प्रवचन सारोद्धार गाथा ५६५, ५६६ ) ( धर्मसंग्रह अधिकार ३ गाथा २२ ) ( पिंड नियुक्ति गाधा ६२, ६३ ) ( पचाशक १३ वाँ गाथा ५, ६ ) (पिण्ड विशुद्धि)
८६६ - ग्रहणैषणा ( उत्पादना) के १६ दोष घाई दूई निमित्ते श्राजीव वणीमगे तिमिच्छा प । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस ए ए ॥ १॥ पुव्विपच्छा संथव विज्जा मंते य चुरण जोगे य । उप्पाथपाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥ २॥ (१) धात्री - बच्चे को खिलाना पिलाना आदि धाय का काम करके या किसी घर में धाय की नौकरी लगवा कर आहार लेना ।
(२) दूती - एक दूसरे का सन्देशा गुप्त या प्रकट रूप से पहुँचा कर दूत का काम करके श्राहारादि लेना ।
(३) निमित्त - भूत और भविष्यत् को जानने के शुभाशुभ निमित्त बतला कर आहारादि लेना ।
(४) भाजीव- स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से अपनी जाति और कुल आदि प्रकट करके आहारादि लेना ।