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श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला
होता है उनका वियोग भी अवश्य होता है, प्राणियों की मृत्यु प्रति क्षण होती रहती है। कहा भी है
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यामेव रात्रिं प्रथमामुपैति, गर्भे वसस्यै नरवीर ! लोकः । ततः प्रभृत्यस्खलित प्रयाणः, स प्रत्यहं मृत्युसमीपमेति।। अर्थात्- महर्षि व्यास युधिष्ठिर को कह रहे हैं- हे नरवीर ! प्राणी पहले पहल जिस रात को गर्भ में बसने के लिए श्राता है उसी रात से वह दिन रात प्रयाण करता हुआ मृत्यु के समीप जा रहा है।
मृत्यु का फल बहुत ही दारुण अर्थात् भयङ्कर होता है क्योंकि उस समय सब तरह की चेष्टाएं अर्थात् हलन चलन बन्द हो जाती हैं और जीव सभी प्रकार से असमर्थ तथा लाचार हो जाता है ।
इस प्रकार संसार के स्वभाव को जानने वाला व्यक्ति दीक्षा का अधिकारी होता है ।
( ६ ) विरक्त- जो व्यक्ति संसार से विरक्त हो गया हो क्योंकि सांसारिक विषयभोगों में फंसा हुआ व्यक्ति उन्हें नहीं छोड़ सकता ।
(७) मन्दकषायभाक् - जिस व्यक्ति के क्रोध, मान आदि चारों कपाय मन्द हो गए हों। स्वयं अल्प कपाय वाला होने के कारण वह अपने और दूसरे के कपाय आदि को शान्त कर सकता है।
(८) अल्प हास्यादि विकृति - जिसके हास्यादि नोकपाय कम हों। अधिक हॅसना आदि गृहस्थों के लिए भी निषिद्ध है ।
( 2 ) कृतज्ञ - जो दूसरे द्वारा किए हुए उपकार को मानने वाला हो । कृतघ्न व्यक्ति लोक में निन्दा प्राप्त करता है इस लिए भी वह दीक्षा के योग्य नहीं होता ।
(१०) विनयान्वित - दीक्षार्थी विनयवान् होना चाहिए क्योंकि विनय ही धर्म का मूल है।
( ११ ) राजसम्मत - दीक्षार्थी राजा, मन्त्री यादि के सम्मत अर्थात अनुकूल होना चाहिए। गजा आदि से विरोध करने वाले